Book Title: Arhat Parshva aur Unki Parampara
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 23
________________ [ २१ ] की जो घटना वर्णित है, वह यह बोध कराती है कि ऐसी साधना जिसमें आत्म-पीड़न और पर-पीड़न जुडा हो, सच्ची साधना नहीं हो सकती। साधना में ज्ञान और विवेक की प्रतिष्ठा आवश्यक है। वह देहदण्डन भी जिसमें ज्ञान और विवेक के तत्त्व नहीं हैं, आत्म-पीड़न से अधिक कुछ नहीं है । देह को पीड़ा देना साधना नहीं है। साधना तो मनोविकारों की निर्मलता है, आत्मा में सहज आनन्द की अनुभूति है। पाव की यह हितशिक्षा चाहे कमठ जैसे उस युग के तापसों को अच्छी न लगी हो किन्तु इसमें एक सत्य निहित है। धर्म साधना को, न तो दूसरों की पीड़ा के साथ जोड़ना चाहिए और न आत्म-पीड़न के साथ । मुक्ति प्राप्ति का अर्थ है वासना और विकारों से मुक्ति । ऐसा लगता है कि पार्श्वनाथ ने अपने युग में धर्म और साधना के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण क्रान्ति की होगी। उन्होंने साधना को सहज बनाने का प्रयत्न किया और उसमें ज्ञान और विवेक के तत्त्व को प्रतिष्ठित किया। भगवान् बुद्ध ने आगे चलकर उभय अन्तों के परित्याग के रूप में जिस धर्ममार्ग का प्रवर्तन किया था उसका मूलस्रोत पार्श्व की परम्परा में निहित था। पार्न धर्म और साधना को परपीड़न और आत्म-पीड़न से मुक्त करके आत्म शोधन या निर्विकारता की साधना के साथ जोड़ते हैं और यही उनका भारतीय संस्कृति और श्रमण परम्परा को सबसे बड़ा अवदान है। पार्श्व की धार्मिक और दार्शनिक मान्यतायें जहाँ तक पार्श्व की मान्यताओं का प्रश्न है, आज हमें उनकी परम्परा का ऐसा कोई स्वतन्त्र ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होता जो इस पर प्रकाश डालता हो । पार्श्व की दार्शनिक और आचार सम्बन्धी मान्यताओं को जानने और समझने के हमारे पास जो भी प्राचीनतम साधन उपलब्ध हैं वे श्वेताम्बर परम्परा में मान्य आगम ग्रन्थ ही हैं। इनमें भी ऋषिभाषित ही एक ऐसा ग्रन्थ है जिसमें पार्श्व के नाम से एक स्वतन्त्र अध्याय है। जिसमें उनकी दार्शनिक और आचार सम्बन्धी मान्यताओं को स्पष्ट किया गया है। तुलनात्मक अध्ययन से मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि ऋषिभाषित प्रत्येक ऋषि के उपदेश को प्रामाणिक रूप से प्रस्तुत करता है। याज्ञवल्क्य, मंखलीगोशाल, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86