Book Title: Arhat Parshva aur Unki Parampara
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 31
________________ [ २९ ] हैं वहाँ महावीर अचेल परंपरा के पोषक हैं। उत्तराध्ययन सूत्र के केशी गौतम संवाद में महावीर को अचेल धर्म का और पार्ग को सचेल धर्म का प्रतिपादक कहा गया है। इससे ज्ञात होता है कि पान अपने श्रमणों को अन्तर-वासक और उत्तरीय रखने की अनुमति देते थे। उत्तराध्ययन सूत्र में पार्ग की वस्त्र-व्यवस्था के सन्दर्भ में 'सन्तरूत्तरो' शब्द आया है। श्वेताम्बर परम्परा के आचार्यों ने इसका अर्थ विशिष्ट मूल्यवान् और बहुरंगी वस्त्र किया है,87 किन्तु यह बात उन शब्दों के मूल अर्थ से संगति नहीं. रखती। यदि हम इन शब्दों के मूल अर्थों को देखें तो इनका अर्थ किसी भी स्थिति में रङ्गीन बहुमूल्य वस्त्र नहीं होता है। इनका स्पष्ट अर्थ है-अन्तरवासक और उत्तरीय । इससे ऐसा प्रतिफलित होता है कि पान की परम्परा के साधु एक अन्तर-वासक और एक उत्तरीय अथवा ओढ़ने का वस्त्र रखते थे। पालि त्रिपिटक साहित्य में निग्रंथों को एक शाटक कहा गया है। उत्तराध्ययन में महावीर की परम्पस. को अचेल कहा गया है। अतः इन एक शाटक निर्ग्रन्थों को महावीर की परम्परा का मानना उचित नहीं लगता है । पालि त्रिपिटक एकशाटक निग्रंथों के चातुर्याम संवर से युक्त होने की बात भी कहताः है अतः एक शाटक निर्ग्रन्थों को पान की परंपरा से जोड़ना अधिक युक्ति संगत लगता है यद्यपि त्रिपिटक में चातुर्याम का उल्लेख 'निगण्ठनातपुत्त' अर्थात् महावीर से संबंधित है, किन्तु मुझे ऐसा लगता है कि त्रिपिटककार महावीर और पान की परम्परा के अन्तर के संबन्ध में स्पष्ट नहीं थे। यदि हम इन निर्ग्रन्थों को पान की परम्परा का अनुयायी मानें तो ऐसा लगता है कि वे एक वस्त्र रखते थे। यहाँ यह समस्या उत्पन्न हो सकती है कि या तो त्रिपिटक में उल्लिखित निर्ग्रन्थ पान की परंपरा के नहीं थे और यदि वे पान की परम्परा के थे, तो त्रिपिटक के एक शाटक के उल्लेख में और उत्तराध्ययन के सन्तरूत्तर के उल्लेख में संगति कैसे बैठायी जायेगी ? मेरी दृष्टि में सामान्यतया पार्वापत्य श्रमण धारण तो एक ही वस्त्र करते थे, किन्तु वे एक वस्त्र ओढने के लिए अपने पास रखते होंगे जिसका उपयोग सर्दी में करते होंगे। आचारांग में महावीर को और समवायांग में सभी जिनों को एक वस्त्र लेकर दीक्षित होने का जो संकेत है वह संभवतः पार्श्वनाथ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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