Book Title: Arhat Parshva aur Unki Parampara
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 72
________________ [ ७० ] चियत्तदेहे जे केइ उवसग्गा उप्पज्जंति, तंजहा-दिव्वा वा माणुस्सा वा तिरिक्खजोणिया वा, अणुलोमा वा पडिलोमा वा, ते ऊप्पन्ने सम्म सहइतितिक्खइ खमइ अहियासेइ ॥१५४॥ तए णं से पासे भगवं अणगारे जाए इरियासमिए जाव अप्पाणं भावेमाणस्स तेसीइं राइंदियाइं विइक्कंताई, चउरासीइमस्स राइंदियस्स अंतरा वट्टमाणस्स जे से गिम्हाणं पढमे मासे पढमे पक्खे चित्तबहुले तस्स णं चित्तबहुलस्स चऊत्थीपक्खेणं पुव्वलकालसमयंसि धायतिपायवस्स अहे छ?णं भत्तेणं अपाणएणं विसाहाहिं नक्खत्तेणं जोगमुवागएणं झाणंतरियाए वट्टमाणस्स अणंते अणुत्तरे जाव केवलवरनाणदंसणे समुप्पन्ने, जाव जाणमाणे पासमाणे विहरइ ॥१५॥ पासस्स णं अरहओ पुरिसादाणीयस्य अट्ठ गणा अट्ठ गणहरा हुत्था ॥१५६॥ -कल्पसूत्र १४८-५६ ४२. (अ) समवायांग २२०, २२१ (ब) कल्पसूत्र १४९ (स) आवश्यक नियुक्ति ३८८ ४३. (अ) उत्तरपुराण ४३ ; (ब) पद्मपुराण ४४. पासणाहचरिउ (वादिराज) ९।९५।५ ४५. हयसेणवम्मिलाहिं जादो हि वाणारसीए पासजिणो । -तिलोयपण्णत्ती ४।५४८ ४६, मुणिसुत्रओ य अरिहा, अरिट्ठनेमी य गोयमगुत्ता। सेसा तित्थयरा खलु कासवगुत्ता मुणेयव्वा -आवश्यक नियुक्ति ३८१ ४७. वाराणस्यामभूत् विश्वसेनः काश्यपगोत्रजः -उत्तरपुराण ७३-७५ ४८. णाहोग्गवंसेसु वि वीरपासो -तिलोयपण्णत्ती ४।५५० ४१. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ९१३ पृष्ठ ३४८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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