Book Title: Arhat Parshva aur Unki Parampara
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 75
________________ [ ७३ ] (ब) ........."तं जहा १ इला २ सुक्का, ३ सतारा ४ सोदामिणी ५ इंदा ६ घणविज्जुया। -भगवती १०५ (स) इला ..."एवं कमा सतेरा, सोयामणी, इन्दा, घणा, विज्जु या वि सव्वाओ एयाओ धरणस्स अग्गयहिसीओ। -ज्ञाता० २।३।१-६ (ज्ञातव्य है कि ज्ञाता में 'सुक्का' का उल्लेख नहीं उसके स्थान पर घना-विद्युता को अलग-अलग करके ६ की संख्या पूरी की गई है) '६४. भगवान् पार्श्व-देवेन्द्रमुनि शास्त्री, पृ० ८६ ६५. महारायगिहाइसु मुणओ खित्तारिएसु विहरिसु । उसभो नेभी पासो वीरो अ अणारिएसुपि । -आवश्यकनियुक्ति २३४ ६६. कुरुकौशलकाशी सुह्यावंती पुड्र मालवान् । अंग-बंग कलिंगाख्य पंचालमगधाभिधान् ।। विदर्भ भद्र, शाख्य दर्शर्णोदीन बहुन्जिनः । विहार महाभूत्या सन्मार्गदेशिनोद्यतः ॥ -सकलकीर्ति, पार्श्वनाथचरित्र २३, १८, १९, १५/७६-८५ ६७. (अ) समवाओ ८1८; ९।४; १६१४; २३।३-४; २४।१; ३०१६; ३८।१; ७०।२; ९५।३; १०४।४ (ब) कल्पसूत्र, १४९-१५६ (स) आवश्यकनियुक्ति २२१,२२२, २५०, २५६, २९०, ३२५, ३८१. (द) तिलोयपण्णत्ती ४।५४८, ५७६, ६६६ ६८. चउपन्नभहापुरिसचरियं ५३ पृ० २४५-२६९ ६९. तिलोयपण्णत्ति चउत्थोमहाधियारो ७०. (अ) देखें पार्वाभ्युदय जिनसेन (ब) उत्तरपुराण (गुपाभद्र) पर्व ७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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