Book Title: Arhat Parshva aur Unki Parampara
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 84
________________ आओ बैठें करें विचार -डा० महेन्द्र सागर प्रचण्डिया प्राण तत्त्व जो स्वयं पूर्ण है, उसके बिना जग अपूर्ण है, प्राण तत्त्व पर्याय प्राप्त कर आओ बैठें करें कहलाता प्राणी संसार । विचार | सुखी स्वर्ग है, दुःखी नारकी, चिन्ता पशुगति में सुधार की, समाधान के लिए मनुज गति, धर्म-ध्यान जिसका आधार । आओ बैठें करें विचार ॥ हम कर्त्ता कर्मों के अपने, हम ही हैं भोक्ता पक्ष जितने, जैसे बोए बीज मिलेंगे, वैसे ही पक्ष दो-दो चार । आओ बैठें करें विचार ॥ हम निमित्त को दोषी ठहराते, उपादान को काम न लाते, दोनों के संयोग साथ से, चला सदा कार्मिक व्यापार । आओ बैठे करें विचार ॥ Jain Education International श्रावक बनता समता श्रम से, प्राणी प्रोन्नति पाता क्रम से, शुद्ध और शुभ उपयोगों के हैं आवश्यक प्रिय सदाचार | आओ बैठें करें विचार || वसु कर्मों का विश्व खेल है, बाहर - भीतर यहाँ जेल है, कुशल खिलाड़ी कर्म काट, करता है अपना भव सुधार । आओ बैठें करें विचार ॥ For Private & Personal Use Only + www.jainelibrary.org

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