Book Title: Arhat Parshva aur Unki Parampara
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 83
________________ [ ८१ ] प्रकार का नैतिक धर्म और धार्मिक संघ ( order ) था । उनमें दो सिद्धान्त प्रमुख थे । पहला आत्मा के पुनर्जन्म का सिद्धान्त और दूसरा भवचक्र अथवा कर्मवाद का सिद्धांत । आत्मा की अमरता में पाइथेगोरस का अटूट विश्वास था । प्राक्तन कर्मों से यह जीवन बना है और इस जीवन में कर्म भविष्य के जीवन का निर्माण करेंगे । संसार जन्म-मरण का चक्र है और मानव जीवन की सार्थकता इसी में है कि वह अपने कर्तव्यों द्वारा इस भव-चक्र से मुक्ति प्राप्त करें । पाइथेगोरस के नैतिक विचार पर्याप्त कठोर हैं। उसने अपने संघ के सदस्यों के जीवन में त्याग, तपस्या और संयम पर विशेष ध्यान दिया। मांस खाना बिलकुल ही वर्जित था । यहाँ तक कि मटर, सेम और लोबिया की फलियों के खाने की भी मनाही थी। विरति, संयम, इन्द्रिय-निग्रह और मिताचार उनके जीवन के मुख्य अंग थे । वे एक विशिष्ट प्रकार का वस्त्र पहनते थे । उन्होंने बताया कि शरीर आत्मा के लिए एक बन्दी गृह है और हमें उससे मुक्ति का उपाय ढूँढ़ना चाहिए । - ग्रीक दर्शन का वैज्ञानिक इतिहास (प्रो० जगदीश सहाय ) पृ० ५८-५० प्रकाशक किताब मण्डल १९६० १३३. देखें - पट्टावलीस मुख्चय ( दर्शनविजय ), उपकेशगच्छ पट्टावली पृ० १७७ - १९४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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