Book Title: Arhat Parshva aur Unki Parampara
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 51
________________ [ ४९ ] आचार्य केशी का समय पार्श्व के निर्वाण के २५० वर्ष पश्चात् बतलाया गया है, यह भी विचारणीय है । पार्श्व और महावीर के बीच २५० वर्ष का अन्तर आगमों में उल्लिखित है किन्तु यह २५० वर्ष का अन्तर पार्श्व के निर्वाण और महावीर के जन्म के बीच माना जाये या पार्श्व के जन्म और महावीर के निर्वाण के बीच माना जाये अथवा पार्श्व के निर्वाण और महावीर के संघ संस्थापन के बीच माना जाय, यह विचारणीय है । पुनः यह अन्तर पार्श्व और महावीर दोनों के जन्म या निर्वाण के बीच भी माना जा सकता है । पार्श्व के निर्वाण और / महावीर के जन्म के बीच २५० वर्ष का काल मानने पर केशी महावीर के समकालीन होना सिद्ध नहीं होते यदि हम केशी को महावीर का समकालीन मानते हैं, जो कि आगम सम्मत भी है, तो हमें पार्श्व और महावीर के बीच जो २५० वर्ष का अन्तर बताया जाता है, वह दोनों के निर्वाण के बीच मानना होगा; क्योंकि कल्पसूत्र में स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि महावीर के निर्वाण के ९८० वर्ष बाद और पार्श्व के निर्वाण के १२१० वर्ष पश्चात् यह ग्रन्थ लिखा गया । 194 मेरी अपनी मान्यता तो यह है कि यदि पार्श्व और महावीर के बीच कुल ४ ही आचार्य हुए उनमें भी आचार्य आर्य केशी महावीर के समसामयिक हैं और आर्य शुभदत्त पार्श्व के समसामयिक हैं । अतः इन दोनों के बीच केवल दो ही आचार्य शेष रहते हैं । अतः पार्श्व के निर्वाण और महावीर के संघ स्थापना के बीच १५० वर्ष से अधिक का अन्तर नहीं रहा होगा यद्यपि इस कथन का कोई प्रामाणिक आधार नहीं है फिर भी यह कल्पना अतार्किक नहीं लगती । चाहे हम उपकेश गच्छ को पार्श्व की परम्परा से सम्बन्धित मानें किन्तु उसकी पट्टावली विवादास्पद अवश्य लगती है उसका एक कारण तो यह है कि उसमें चार ही आचार्यों के नाम को दोहराया गया है । यद्यपि पूर्व मध्यकाल में नामों को दोहराने की परम्परा रही है किन्तु यह परम्परा महावीर के समय या ईस्वी पूर्व में भी थी इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता है । संवत् १६५५ में रचित उपकेशगच्छीय पट्टावली, केशी श्रमण के पश्चात् पांचवें पट्ट पर स्वयंप्रभसूरि का उल्लेख करती है तथा यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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