Book Title: Arhat Parshva aur Unki Parampara
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi

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Page 17
________________ [ १५ } लाया। कथा के अनुनार उसे णमोकारमन्त्र सुनवाया और वह मरकर धरणेन्द्र नामक देव हुआ। कमठ इस घटना के कारण लज्जित हुआ और जन-सामान्य में उसकी प्रतिष्ठा गिरी। फलतः वह पार्ग का विरोधी बन गया । कथानक के अनुसार कमठ मरकर मेघमाली नामक देव हुआ और उसने जब पार्श्वनाथ साधना कर रहे थे अतिवृष्टि करके उन्हें उपसर्ग (कष्ट) दिया। उस समय धरणेन्द्र ने आकर पान को जल से ऊपर ऊठाया। परवर्ती पार्श्व चरित्र संबन्धी विभिन्न ग्रन्थों में भी इस घटना के वर्णन में भिन्नता है। पद्मकीर्ति के पार्श्वनाथ चरित्र60 के अनुसार यवनराज को परास्त करने के पश्चात् पार्श्व कुशस्थल में निवास कर रहे थे। उसी समय उन्होंने अनेक लोगों को अर्चना की सामग्री लेकर नगर के बाहर जाते देखा। राजा रविकीर्ति से पूछने पर ज्ञात हुआ कि उस स्थल से एक योजन की दूरी पर वनखण्ड में अनेक तापस निवास करते हैं और कुशस्थल के निवासी उनके परम भक्त हैं। पार्श्वनाथ ने वहाँ जाकर देखा कि कुछ तपस्वी पंचाग्नि तप कर रहे हैं। कुछ धूम्रपान कर रहे हैं, कुछ लोग पाँव के बल वक्षों पर लटके हैं और उनका शरीर अत्यंत कृश हो गया है । उसी समय पान ने कमठ नामक एक तापस को जंगल से लकडी का एक बोझ लेकर आते हुए देखा । वह लकड़ी को अग्नि में डालना ही चाहता था कि पार्श्व ने उसे रोका और कहा कि इसमें भयङ्कर सर्प हैं। क्रोधवश कमठ ने उस लक्कड़ को चीरा और उसमें से एक सर्प निकला, जो कि लक्कड़ के चीरने के कारण क्षतविक्षत हो चुका था। पार्श्व ने उसे णमोकारमन्त्र सुनाया और वह नागराजाओं के बीच वीरदेव के रूप में उत्पन्न हआ। उत्तरपुराण 1 में गुणभद्र ने इसी घटना को पार्श्वनाथ के ननिहाल में घटित होना बताया। साथ ही तापस के रूप में पार्व के नाना महीपाल का उल्लेख किया है। उपर्युक्त घटना के घटना-स्थल को लेकर भी विविधता है। चउपन्नमहापुरिसचरियं में इस घटना को वाराणसी में घटित होना बताया गया है । जबकि उत्तरपुराण में उसे पार्श्व के नाना के आश्रम में घटित होना बताया है। पद्मकीर्ति ने पार्श्वनाथ चरित्र में इसे कुशस्थल में होना बताया है। इसी प्रकार चउपन्नमहापुरिसचरियं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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