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प्रस्तुत ग्रंथ में प्रकट 'ज्ञानीपुरुष' की वह हृदयस्पर्शी वाणी का संकलन किया गया है कि जिसमें ऐसी कुछ घटनाओं पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला गया है। ताकि प्रत्येक सुज्ञ पाठक के खुद के जीवन व्यवहार में एक नई ही दृष्टि, नया ही दर्शन और विचारक दशा की नई ही कड़ियाँ स्पष्ट होने में सहायक हों, ऐसा अंतर-आशय है।
ज्ञानीपुरुष की वाणी उदयाधीन रूप से, द्रव्य-क्षेत्र-काल और सामनेवाले व्यक्ति के भाव के अधीन निकलती है और फिर भी जगत्व्यवहार के वास्तविक नियमों को प्रकट करनेवाली तथा सदा के लिए अविरोधाभासी होती है। सुज्ञ पाठक को इस वाणी में विरोधाभास की क्षति भासित हो तो वह मात्र संकलन के कारण ही है!
- डॉ. नीरूबहन अमीन के जय सच्चिदानंद