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सम्राट की ललकार को मानो व्याघ्रराज ने स्वीकारा। वह अपने पिछले पैरों के बल उत्तान खड़ा हो गया। उसने अपने अगले पंजे, भुजाओं की तरह पसार कर मानो सम्राट को मल्ल-युद्ध के लिये आवाहन दिया। सम्राट ने सीधे एक भयंकर चूंसा मार कर, सिंह के वक्ष को विदीर्ण कर देना चाहा । अपनी मुठियों से उसके गुर्राते जबड़े की डाढ़ों को तोड़ देना चाहा । • • लेकिन सब व्यर्थ।
सिंह ने अपने चारों पंजों के बीच राजा को जकड़ लिया। सम्राट के अनुचर सैन्य त्राहिमाम् कर उठे । सिंह पर तीर चलायें भी तो कैसे ? राजा जो उसकी छाती पर जकड़ा है। सिंह को मार कर, राजा को नहीं बचाया जा सकता। हाहाकार करते हुए वे संन्य-जन चीखते रह गये ।
. 'और सिंह के आलिंगन में सम्राट को मृदुता और आनन्द की मूर्छा-सी आ गयी।
जब श्रेणिक की तन्द्रा टूटी, तो कोई व्याघ्र वहाँ नहीं था। और वह फूलसा हलका हो कर मौत की उस ख़ान्दक में गुमसुम खड़ा था।
. : ओह, उससे कोई भयभीत नहीं, कोई आतंकित नहीं ? इस सिंह ने भी उसकी ललकार को व्यर्थ कर दिया । महाकूर, महाभयानक के इस चरम ने भी उसे प्रतिरोध न दिया ? श्रेणिक लड़े तो किससे लड़े, जीते तो किसको जीते ? यहाँ तो सब सहज ही विजित हो कर, परस्पर समर्पित हैं। हिंस्रता के अवतार इस अष्टापद ने भी यहाँ हिंसा को त्याग दिया है। यह किसकी सत्ता का प्रताप
. . एक नारी है कहीं, मगध के अन्तःपुर के एकान्त कक्ष में। एक पुरुष है कहीं, मगध के विपुलाचल पर । पुरुष और प्रकृति ने मिल कर उसके विरुद्ध ऐसा दारुण षडयंत्र किया है, कि उसे अपनी इयत्ता कायम रखना मुश्किल हो गया है। वनस्पति और तिर्यंच, कीट-पतंग, जड़-जंगम, जलचर, थलचर, नभचरप्राणि मात्र इस षडयंत्र में शरीक हो गये हैं। अजेय बली श्रेणिक के विरुद्ध ? ठीक है, वह उनका सीधा सामना करेगा। कालजयी श्रेणिक के वज़ को तोड़ दे, ऐसी कोमलता अस्तित्व में नहीं रह सकती । वह इसे देख लेगा।
· · और मगधेश्वर लौट पड़े। उनका अंगरक्षक सैन्य उनका अनुसरण करने लगा। पीछे कई अश्व और सैनिक चल रहे हैं। सरंजाम का एक पूरा
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