________________
जाने पर वह तो अपनी गन्धर्व-प्रदत्त वीणा बजाता हुआ, सपनों के लावण्यदेशों में निश्चिन्त और उन्मुक्त विचरना चाहता था।
चण्ड प्रद्योत इन सारे आश्वासनों से बेहद अभिभूत हो गया था। उदयन द्वारा विजित और प्रेषित विन्ध्यारण्य की अद्भुत सुन्दरी कृष्णा भिल्ल कुमारियों की भेंट पा कर वह परितृप्त हो गया था। मृगावती की वह चित्रपट छबि, उसकी वासना के सुलगते जंगलों में काल पा कर धूमिल पड़ गयी थी। ____ इस बीच उसने यह भी सुन लिया था, कि चित्रपट की वह सुन्दरी अतिरंजित रूप से अंकित की गयी थी। महारानी मृगावती की असली रूपाकृति वह नहीं थी। इधर गुज़रते बरसों के साथ विधवा मृगावती का रूप-लावण्य भी निरन्तर तपस्या और त्याग के शुष्क जीवन के कारण धुल गया था। वह मोहन मादक मूर्ति जाने कहाँ लुप्त हो गयी थी। उसके व्यक्तित्व में एक तापसी का कारुणिक और तेजोमान रूप प्रकट हो उठा था । इधर प्रद्योत अब कौशाम्बी के सिंहासन पर आरूढ वत्सराज उदयन का एक अन्तरंग केलि-सखा-सा हो गया था।
इस बीच उज्जयिनी की राजबाला वासवदत्ता के सौन्दर्य की कीति आर्यावर्त के दिगन्तों पर गंज रही थी। चिरन्तन् सौन्दर्य-विहारी उदयन ने एक बार उज्जयिनी में उसके निजी उद्यान में उसकी एक झलक देखी थी। उन दोनों की आँखें क्षण भर मिली थीं। और उनके बीच ठगौरी पड़ गयी थी। उसे प्राप्त कर लेना उदयन के लिये एक कटाक्षपात मात्र का खेल था। पर वह वासवदत्ता का हरण करना नहीं चाहता था, उसे जीत लाना चाहता था। उधर वासवी भी उदयन के स्वप्न और अश्रुत संगीत में ही रात-दिन जीने लगी थी। अपनी घोषा वीणा में वह सदा उसी के प्रति अपना प्रणय निवेदन करती रहती थी।
चण्ड प्रद्योत स्वयम् भी मन ही मन जानता था, कि वासवदत्ता का पाणिग्रहण करने योग्य कोई एक ही राजपुरुष ससागरा पृथ्वी पर हो सकता था, तो वह वत्सराज उदयन था । लेकिन वह स्वाभिमानी उदयन को जानता था। वह अपने प्रस्ताव का अस्वीकृत होना सहन नहीं कर सकता था। उसने अपने मंत्रियों से परामर्श करके उदयन को पकड़ मंगवाने के लिये एक युक्ति का प्रयोग किया। उसने विन्ध्यारण्य में, अपने 'अनलगिरि' हस्ती-रत्न की एक मायावी आकृति को विचरती छड़वा दिया। उस हाथी पर उदयन की निगाह बहुत पहले से थी । वह सदा उसे हस्तगत करने की अनेक युक्तियाँ सोचता रहता था। उसने जब अपने क्रीडांगन में ही उमे उन्मत्त विचरते देखा, तो अपनी वीणा से उसे बलात् आकृष्ट कर उस
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org