Book Title: Anuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 406
________________ ४८. रूप से लिखा जाना चाहिये था। उन्हें इसमें तथ्यात्मक संयोजना या संगति चूकती नजर आती है। यह इस कारण, कि हमारे यहाँ रूपबन्ध (स्ट्रक्चर), विधा और संगति सम्बन्धी धारणा भी रूढ़िग्रस्त हो गयी है। इस मुद्दे पर लेखक और समीक्षक दोनों ही में मौलिकता, अन्तर्दृष्टि और पहल का अभाव स्पष्ट लक्षित होता है। 'अनुत्तर योगी' में स्ट्रक्चर, संगति और विषागत सारी पूर्व धारणाएँ अनायास टूटी हैं। क्यों कि इस रचना का केन्द्रीय नायक है, अनन्त-आयामी अनन्त-पुरुष महावीर । स्वयम् विषय-वस्तु के इस डायनमिज्म ने, रचना-स्तर पर अनायास सारी ऐसी कृत्रिम सीमाओं को छिन्न-भिन्न कर दिया है। इस कृति के स्ट्रक्चर को, ठीक प्रकृति में चल रही नैसर्गिक रूपायनगत प्रक्रिया से समझा जा सकता है। जैसे पर्वत का प्रकटीकरण होता है, स्वयम् पृथ्वी की एक अन्तरक्रियागत चेतना या अनुप्रेरणा से । जैसे समुद्र में एक प्रवाल का फूल फूटता है, और समुद्र की नैसर्गिक गतिमत्ता से एक दिन वह प्रवाल की एक विशाल चट्टान का रूप धारण कर लेता है। वैसे ही जैसे लावा पक्षी का सुनिर्मित, सुशिल्पित जालीदार घोंसला अनायासिक होता है। 'अन तर योगी' का स्ट्रक्चर और उसकी रचना-प्रक्रिया भी ठीक उसी प्रकार है। महावीर एक ऐसी सत्ता है, जिसका कलात्मक रूपायन भी स्वयम् उसकी चेतना में से ही प्रकट होता है। जैसे समुद्र के हिल्लोलन मे से स्वतः आविभूत रत्नों की राशियां। और कला में संगति तार्किक नहीं, माविक होती है, यह हमारे आधुनिक पाठक और समीक्षक को भी यदि नहीं मालूम, तो इस कृति से मालूम हो जाना चाहिये। स्तरीय पाठकों और साहित्य-विवेचकों के बीच यह कृति कहाँ तक सफल या विफल हुई, इसका निर्णय तो स्वयम् समय करेगा। लेकिन पूरे अर्वाचीन भारतीय वाङमय में, यह किताब अपनी तरह की बहुत अलग साबित हुई है। महावीर को नियति रचना-स्तर पर यही हो सकती थी। इस नियति का साहित्य में क्या अन्जाम होता है, यह तो वक्त देखे । मगर मुझे इसकी रचना से दो उजागर और अचूक लाभ हो गये। एक तो सृजन के इस बेमुद्दत लम्बे रियाज के दौरान, मैंने कला-सम्भावना के कई अद्भुत द्वीप खोज निकाले, और कथ्य तथा शिल्प के कई अज्ञात और अकूत खजानों को कुंजियाँ मेरे हाथ लग गईं। दूसरे, मैं महावीर के जोवन्त सृजन में सफल हो सका या नहीं, यह महावीर खुद जानें, लेकिन इस सृजन से मेरी अन्तश्चेतना और मेरे अन्तर-बाह्य व्यक्तित्व का जो एक सर्वथा अपूर्व नवजन्म और नवसृजन हुआ है, वह वचनातीत है। इस सृजन ने मुझे एक अटल निश्चय (सर्टीट्यूड) Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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