Book Title: Anuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 376
________________ . १८ श्रमण-प्रवज्या अंगीकार कर ली थी । बाद को जमालि का दमित अहम् जागा, और वह भगवान का द्रोही हो गया, जिसे आगम ने 'निन्हव' होना कहा है । बुद्धकथा में ऐसा एक “निन्हव” या द्रोही स्वयम् भगवान बुद्ध का माई देवदत्त पाया जाता है । महावीर कथा में प्रभु के ऐसे दो द्रोही हैं, पहला मंखलि गोशालक, दूसरा जमालि । एक आजीवक मत का प्रवर्तक और समकालीन तीर्थक्, और दूसरा अपना ही रक्तजात जामाता जमालि । ये विरोधी शक्तियों के प्रतिनिधि थे, जो महावीर की अरहत्ता को लोक में अन्तिम रूप से प्रमाणित करने के लिये कसोटी बने । क्रीस्त के जीवन में भी यूदास विरोधी अन्धकार-शक्ति का प्रतिनिधि था । मैंने अपनी संवेदनात्मक ज़रूरत में से प्रथमतः दिगम्बर कथा को स्वीकारा, और महावीर का अपनी मंगेतर यशोदा के साथ मिलन तो कराया, लेकिन विवाह नहीं । विवाह न करा कर, मैंने उनके बीच के भावात्मक प्रणय को अक्षुण्ण रवखा, और उसे अन्तहीनता प्रदान कर दी । अनवद्या और जमालि की कथा एक ऐसी सशवत प्रतीकात्मक सार्थकता रखती है, कि उसको रचना मेरी महावीर-अवधारणा की एक अनिवार्य आवश्यकता थी। मेरे महावीर ने तो विवाह किया नहीं, तो प्रियदर्शना उनकी बेटी कैसे हो, और जमालि जामाता क्यों कर हो ? और इस सम्बन्ध का निर्वाह भी मनोवैज्ञानिक और सम्वेदनात्मक दृष्टि से ज़रूरी था । लेकिन वह निर्वाह हो कैसे ? मैंने सम्बन्धों में किंचित सतही परिवर्तन करने की जोखिम उठा कर, इन पात्रों को ज्यों का त्यों अपना लिया । प्रियदर्शना को महावीर के किन्हीं चचेरे भाई जयवर्द्धन की बेटी दिखा दिया, और मांजे जमालि को किसी चचेरी बहन, सुदर्शना का बेटा । तो बेटी-दामाद वे बने रह गये । और इस तरह अपने ही रक्त द्वारा प्रभु के द्रोह की मार्मिक कथा को रचने की भूमिका सुलम हो गयी । जब पूर्वज कवियों के बीच कथानक-मेद मिलते हैं, तो आ ज कवि अपने भावानुसार यह छुट क्यों नहीं ले सकता ? तथ्यधर्मी इतिहासपंडित और कट्टर साम्प्रदायिक साधुओं को यह छूट और परिवर्तन अखर सकता है । लेकिन यदि वे एक रचनाकार की भीतरी जरूरत के तर्क को समझेंगे, तो गम्भीर आपत्ति होने का कोई कारण नहीं है। यह भी यहाँ प्रासंगिक और दृष्टव्य है, कि हमारी सदी के आठवें दशक में इतिहास अब महज़ तिथि-ऋमिक घटनाओं का ब्यौरा नहीं रह गया है । मनोविज्ञान की तरह ही, इतिहास में भी गहराई का आयाम प्रमुख हो गया है । और अब के इतिहासकार महज़ तथ्यों के शोध पंडित नहीं, वे इतिहास-दार्शनिक हैं, और वे अब तथ्यों पर नहीं अटकते, इतिहास का Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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