Book Title: Anuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 389
________________ ३१ सिंहासनों को उलट देने, और सारी व्यवस्था में अतिक्रान्ति घटित करने की उद्घोषणाएं की हैं, देखना होगा कि लेखक कहाँ तक आगे इन प्रतिज्ञाओं की परिपूर्ति दिखा पाता है ? चुनौती थी कि कैसे वह इस महाक्रान्ति को महावीर के जीवनकाल में, और परिणामतः बीच के ढाई हजार वर्षों में प्रतिफलित दिखाता है ? क्यों कि न तो महावीर के जीवन काल में, और न आज तक वह अतिक्रान्ति स्पष्ट, ठोस घटना के रूप में दिखाई पड़ती है । तो समीक्षक महोदय के मन वह सब एक रोमानी खामख्याली या उड़ान थी, और किसी अवास्तविक यूटोपिया के अतिरिक्त, उन प्रतिज्ञाओं की कोई सक्रिय परिणति उन्हें प्रत्याशित नहीं थी । द्वितीय खण्ड में महावीर कर्मक्षेत्र में हैं ही नहीं, और अखण्ड मोन साध कर 'रिट्रीट' में विचर रहे हैं, और अपने अभीष्ट कैवल्य और अनाहत वीर्य की उपलब्धि के लिये एकाग्र कायोत्सर्ग कर रहे हैं। फिर भी वे चेतना में सक्रिय हैं, और राह में मिलने वाली अनेकों आत्माओं के साथ भीतर से जुड़ कर, उनके जन्मान्तरों का बोध उन्हें करा कर, गहराई के स्तर पर एक वैश्विक और अन्तर्गामी अतिक्रान्ति कर रहे हैं । स्थूल व्यवस्था - परिवर्तन का सीधा और यांत्रिक रास्ता मूलतः ही उनका नहीं । सतही व्यवस्था को भी यदि अभीष्ट रूप में बदलना है, तो पहले कुछ इकाइयों के माध्यम से सारे वैश्विक मानव की चेतना में मूलगामी रूपान्तर करना होगा । और द्वितीय खण्ड में, अन्तर्दर्शी साहित्य- पर्यवेक्षक और अन्वीक्षक इस अतिक्रान्ति की प्रक्रिया देख सकता है, सम्वेदित कर सकता है । लेकिन उक्त समीक्षक महोदय ने द्वितीय खण्ड की समीक्षा में फिर अपनी चुनौती को दुहराया, कि महावीर की प्राथमिक प्रतिज्ञाएँ इस खण्ड में मी प्रतिफलित नहीं हुई हैं, सिवाय एक अपवाद के । कि भौतिक मूल्य-मान का प्रतिनिधि सम्राट श्रेणिक, आध्यात्मिक मूल्य-मान के स्तम्भ महावीर से पराजित हो जाता है । एक नंगे, निहत्थे, मौन, ऊपर से लगभग अक्रिय निरीह दीखते एक तपोमग्न श्रमण ने, एक ऊँगली तक उठाये बिना, भौतिक सत्ता के सर्वोपरि अधीश्वर श्रेणिक को भीतर ही भीतर पराजित कर दिया -- चेतना के स्तर पर । पराजित ही नहीं किया, उसे अपने प्यार से गला कर अपना परम प्रिय पात्र बना लिया । इन्द्रभूति गौतम के बाद, भगवान का सर्वोपरि निकट प्रश्नकर्ता और श्रोता है श्रेणिक, जिसने साठ हजार प्रश्न महावीर से पूछे । और महावीर द्वारा दिये गये जिनके उत्तर इतिहास की नाड़ियों में व्याप गये । मेरे तथ्यवादी और स्थूल घटनावादी समीक्षक मित्र की दृष्टि में यह Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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