Book Title: Anuttar Yogi Tirthankar Mahavir Part 03
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Veer Nirvan Granth Prakashan Samiti

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Page 393
________________ और नन्दिषेण महावीर के पूर्णत्व, पूर्ण सौन्दर्य, और पूर्णकाम सम्मोहन से आकृष्ट हो कर उनके पास जाते हैं, और सौन्दर्य, काम, कला, प्रेम और नर-नारी सम्बन्ध का एक अत्यन्त मौलिक और सर्वथा नया आयाम उपलब्ध करते हैं। काम और राम का द्वंद्व सिर्जित करके महावीर उन्हें अकुण्ठ, निग्रंथ और द्वंद्वातीत रूप से जीवन्मुक्त बना देते हैं। क्या यह मूलगामी अतिक्रान्ति प्राथमिक रूप से अनिवार्य नहीं, ताकि पहले मनुष्य अपनी जन्मजात कामिक कुण्ठाओं से मुक्त हो, और तब एक स्वस्थ समंजस और अखण्ड मानव इकाई के रूप में खड़ा हो कर, सतही व्यवस्थागत वैषम्यों का आमूलचूल उन्मूलन कर सके। रथिक-पत्नी सुलसा की कथा में, एक अनजान अकिंचन निम्नवर्गीय नारी को, सारे सम्राटों की ऊंचाइयां लांघ कर, श्रीमगवान का ऐकान्तिक प्रेम और अनुग्रह प्राप्त होता है। सम्राट और साम्राज्य की रक्षा के लिये बलि हो जाने वाले सुलसा के बत्तीस मृत बेटों की साम्राजी सम्मान के साथ स्मशान-यात्रा और अन्त्येष्टि होती है। लाखों निरीह सैनिकों को कटवा कर, अपनी सत्ता को कायम रखने वाले आज तक के सत्ताधीशों द्वारा मृत सैनिकों के राज्य-सम्मान की जो कूर, शोषक और प्रवंचक परम्परा आज भी जारी है, उसका तीखा व्यंग इस कथा में स्वतः उमर आया है। लेकिन महावीर के समवसरण में अन्ततः सम्राट श्रेणिक सुलसा की चरण-धूलि हो जाना चाहता है। और अन्त में महावीर एक ब्राह्म-मुहूर्त में सुलसा के द्वार पर अचानक दस्तक दे कर, उसे वचन देते हैं कि : 'लो, तुम्हारा बेटा बा गया। और तुम्हारा यह बेटा कलिकाल में सर्वहारियों पर सर्वहारा की प्रभुता स्थापित करेगा।' इस प्रकरण द्वारा महापीर भी वै.श्वक अतिक्रान्ति, ठीक आज के सन्दर्भ से जुड़ कर, इस क्षण तक सक्रिय दिखाई पड़ती है। मार्स भी उन महावीर की ही अटूट ज्योतिर्मान परम्परा के, एक युगीन अंशावतार ही हैं। महावीर व्यक्ति नहीं विश्व था, विश्वम्भर था। और उसकी अतिक्रान्ति का धर्मचक्र आज भी उसके युगतीर्थ में निरन्तर प्रवर्तमान है। __ और प्रस्तुत तृतीय खण्ड के अन्तिम आख्यान के नायक आनन्द गृहपति में, पणिक सभ्यता का समूचा पाखण्ड मूर्तिमान हुआ है। उसके माध्यम से महावीर युगान्तर-व्यापी, सर्वभक्षी वणिक चरित्र और व्यवस्था के कुरूप कदर्य चेहरे को नग्न करते हैं, और वणिकत्त्व का अन्तिम रूप से भंजन कर देते हैं। आनन्द गृहपति को ही निमित्त बना कर, वे लोकबद्ध रूढ़ धर्ममार्ग की मिथ्या, पाखण्डी और शोषण की हथियार स्वरूप झूठी आचार-संहिताओं Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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