Book Title: Anusandhan 2019 10 SrNo 78
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 8
________________ बे संस्कृत स्तोत्रो - सं. विजयशीलचन्द्रसूरि एक प्रकीर्ण पत्र, सम्भवतः १६मा शतकमां लखायेखें, तेमां बे सरस स्तोत्ररचनाओ प्राप्त थई छे. बन्ने प्रासादिक-प्रांजल रचनाओ छे. पहेली '२४ (वर्तमान) जिन नमस्कार' नामनी कृति छे. तेमां ११ पद्यो छे. एक आर्या छन्दमां अने एक त्रिभङ्गीसरीखा (द्विभङ्गी?) मात्रामेळ छन्दमां एम ११ पद्यो छे. ११मुं शार्दूलविक्रीडितमां छे. आन्तर-बाह्य प्रासनी योजना, आर्याना अन्तिम पद जेवा पद वडे ज पछीना छन्दनो उपाड-एम यमकनी छांटवाळां पद्यो, सुगम-सुग्रथित शब्दावलीबधुं मजानुं छे. तेना कर्ता, अग्यारमा पद्यमा निर्देश थया प्रमाणे 'ब्रह्मऋषि' छे. ते पार्श्वचन्द्रगच्छना साधु-कवि छे. बीजं स्तोत्र स्तम्भनपार्श्वनाथ- स्तोत्र छे, ते पण ११ पद्यप्रमाण छे. तेना कर्ता गच्छपति श्रीपार्श्वचन्द्रसूरिदादा स्वयं छे. तेओए स्तम्भनतीर्थ (खम्भात)मां ज आ रचना करेल छे. २४ जिन नमस्काराः ॥ महोपाध्याय श्रीहीरानन्दचंदसद्गुरुभ्यो नमः ।। श्रीवसुभूतितनूजं वन्दे श्रीगौतमाभिधं सदा साधुम् । सकललब्ध्येकनिलयं मलयं गुणचन्दनौघस्य ॥१॥ गुणगरिमामयं श्रीवामेयं नौमि सदा जनसौख्यकरं . सुरनरगणवन्द्यं नित्यमनिन्द्यं कष्टतरूदयमूलहरम् । शशधरसमवदनं समतासदनं पापदन्तिदलनैकहरिं कमठस्मयवारं त्यक्तविकारं भवसमुद्रसन्तारतरिम् ॥२॥ चरणकमलं गुरूणां प्रसादगेहं निरन्तरं नत्वा । स्तौमि जिनेशानित्थं ललितामलबन्धबन्धेन ॥३।। बन्धेन विहीनं शिवगतिलीनं वृषभजिनं वन्देऽहं कर्मारिभिरजितं श्रीजिनमजितं काञ्चनकोमलदेहम् ॥४॥

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