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सह-अस्तित्व
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नमस्कार:
'जेण विणा लोगस्य ववहारो सव्वहा ण निव्वडइ।
तस्य भुवणेक्कागुरुणो, णमो अणेगंतवायस्स ।' मैं अनेकान्तवाद को नमस्कार करता हूं, इसलिए कि उसके बिना जगत् का व्यवहार नहीं चलता। सत्य की प्राप्ति की बात तो दूर, समाज और परिवार के सम्बन्ध का निर्वाह भी नहीं होता। अनेकान्त सबकी धुरी में है, इसलिए वह समूचे जगत् का गुरु है, एकमात्र गुरु और अनुशास्ता है। सारा सत्य और सारा व्यवहार उसके द्वारा अनुशासित हो रहा है, इसलिए मैं उसको नमस्कार करता हूं। किं तत्त्वम्? .. मनुष्य की यह अनादिकालीन जिज्ञासा रही है कि सत्य क्या है ? तत्त्व क्या है ? जबसे मनुष्य ने सोचना प्रारम्भ किया, तब से उसके मन में यह प्रश्न उठता रहा है कि सच्चाई क्या है ? वास्तविकता क्या है? तत्त्व क्या है? 'किं तत्त्वम्'-यह प्रश्न हमारी सृष्टि में लाखों-लाखों बार पूछा गया। जिसकी भी प्रज्ञा जागी, उसने यह प्रश्न अवश्य ही पूछा।
एक बार गणधर गौतम ने भगवान् महावीर से पूछा- किं तत्तम् ? तत्त्व क्या
भगवान् ने कहा-उपनेइ वा ! उत्पन्न होना तत्त्व है, उत्पाद तत्त्व है।
मन में सन्देह उभरा, यदि उत्पन्न होना ही तत्त्व है, तो निरन्तरं उत्पाद होता चला जाएगा। आबादी इतनी बढ़ जाएगी कि पैर टिकाने जितना स्थान भी उपलब्ध नहीं होगा। प्राणी से प्राणी सट जाएगा, पदार्थ से पदार्थ सट जाएगा और फिर आगे पैदा होने वालों के लिए कहीं अवकाश नहीं रहेगा। चाह अनचाह रह जाएगी। चाह कुंआरी रह जाएगी। पैदा होने वाले कहां पैदा होंगे? उन्हें अवकाश ही नहीं मिलेगा। बड़ी समस्या है।
उत्पाद वाली बात समझ में नहीं आई, तब गौतम ने फिर पूछा—भन्ते ! किं तत्त्वम् ? तत्त्व क्या है?
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