________________
प्रवचन १
संकेतिका १. किं तत्तं ? तत्त्व क्या है ? तत्त्व है—शाश्वत और अशाश्वत का जोड़ा। २. अस्तित्व के स्तर पर-चेतन-अचेतन । ३. जीवन के स्तर पर
• प्राण-अपान का विपरीत दिशागामित्व ही जीवन है । • उत्तेजक और शिथिलीकारक स्नायु-संस्थान का सन्तुलन ही जीवन है।
• ज्ञान-केन्द्र और काम-केन्द्र का सन्तुलन ही जीवन है । ४. विकास की दृष्टि से अंगूठा विकास का आधार है। ५. विरोधी युगल या द्वन्द्वात्मक जीवन के आधार पर सप्रतिपक्ष का सिद्धान्त
प्रतिष्ठित हुआ है। ६. विरोधी मांग, आकांक्षा-इससे फलित होता है-सह-अस्तित्व। ७. भेद या योग के जगत् में सप्रतिपक्षता का सिद्धान्त ।
• अभेद या प्रयोग के जगत् में यह सिद्धान्त नहीं है। ८. चेतना के अनावृत होने पर ये द्वन्द्व समाप्त हो जाते हैं। फिर अज्ञान, दुःख
और अशान्ति नहीं होती।
९. द्वन्द्वात्मक अस्तित्व
• चोर में छिपा साहूकार, उसे जगाए। • साहूकार में छिपा चोर, उसे सुलाए ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org