Book Title: Anekant 1938 Book 02 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 12
________________ वर्ष २ किरण १] श्रीकुन्दकुन्द और यतिवृषभमें पूर्ववर्ती कौन ? नामकी पहली मंगलाचरण-गाथाको देखा तो कुछ पुरातनाचार्य श्रीअपराजितसूरिने भगवती अहतियातके साथ यह लिख दिया कि “यदि त्रिलोक- आराधना' की टीकाके शुरूमें इस गाथाको प्रज्ञप्ति के कर्ता यतिवृषभ ही हैं (जो कि हैं ही) तीर्थकरों में भी सबसे पहले अन्तिम तीर्थंकर श्री. तो यह मानना पड़ेगा कि प्रवचनसारमें यह गाथा वर्द्धमानको नमस्कार करनेके उदाहरणस्वरूप इसी ग्रंथपरसे ली गई है ; क्योंकि इन्द्रनन्दी के अथवा आदिय मंगलाचरणके नमूनेके तौरपर कथनानुसार कुन्दकुन्दाचार्य यतिवृषभसे पीछे हुए दिया है । साथमें, ‘सेसे पुणतित्थयरे' वाली दूसरी हैं.–यतिवृपभके वाद ही उन्होंने सिद्धान्त ग्रंथोंको गाथा भी एक ही विद्वानकी कृतिरूपसे दी है, टीका लिम्वी है। साथ ही दवे शब्दोंमें यह लिख जिससे इस गाथाके कुन्दकुन्द-कृत होने में सन्देह कर कछ पुष्टि भी करदी कि “त्रिलोकप्रज्ञनिमें नहीं रहता । यह गाथा उधृत नहीं जान पड़ती; क्योंकि वहाँ यह तीर्थकगेंके क्रमागत स्तवन में कही गई है" * । _ प्रत्युत इसके, त्रिलोकप्रज्ञप्ति में यह गाथा परन्तु प्रचलित मान्यताके प्रभाववश उन्हे यह इतनी अधिक सुसम्बद्ध और अनिवार्य मालूम नहीं खयाल नहीं पाया कि प्रवचनसारमें भी यह गाथा होती--वहाँपर सिद्धलोकप्रज्ञप्ति' नामक कुछ उद्धृत नहीं जान पड़ती । वहाँ तो वह एक अन्तिम महाधिकार के चरमाधिकार 'भावना' को ऐसे मौलिक ग्रंथको आदिम मंगलाचरण-गाथा है। समाप्त करके और 'एवं भावना सम्मत्ता' तक जिसके कर्ता महान आचार्य श्रीकुन्दछन्दके लिखकर कुन्थुजिनेन्द्र से वर्द्धमान पर्यंत आठ विषयमें यह कल्पना भी नहीं की जासकती तीर्थंकरोंकी स्तुति आठ गाथाओंमें दी है. --- उन्हीं कि उन्होंने अपने ऐसे महत्वशाली ग्रंथके लिये में उक्त गाथा भी शामिल है। ये सब गाथाएँ मंगलाचरणकी गाथा भी कहींसे उठाकर अथवा वहाँ पर कोई विशेष आवश्यक मालूम नहीं होतींउधार लेकर रखी होगी-उसे वे स्वयं न बना खामकर ऐसी हालतमें जबकि एक पद्यके बाद सके होंगे। दूसरे, मंगलाचरणकी दूसरी गाथा ही, जिसकी स्थिति भी संदिग्ध है, २४ तीर्थंकरों 'सेसे पुण तित्थयरे' के साथ वह इतनी अधिक को अन्तमंगलके तौरपर नमस्कार किया गया है; सुसम्बद्ध है कि उसके बिना 'सेसे पुण तित्थयरे' वहाँ प्राकृत गाथाका 'एस' पद भी कुछ खटकता वाक्यका कोई भी स्पष्ट अर्थ नहीं बैठता। जो हुअा जान पड़ता है और ये सब गाथाएँ 'उद्धृत' महानुभाव संसेपुणतित्थयरे' जैसी चार महत्वपूर्ण भी हो सकती हैं। त्रिलोकप्रज्ञप्ति के इसी ६ गाथाओंकी रचना अपने मंगलाचरणके लिय कर अधिकार तथा अन्यत्र भी कुन्दकुन्दके प्रवचनसकता हो उसके लिये 'एससुरासुर' नामकी सारादि ग्रंथोंकी और भी कितनी ही गाथाएँ ज्योंगाथाकी रचना कौन बड़ी बात है ? तीसरे, बड़ा बात है ! तासर, की त्यों अथवा कुछ परिवर्तन या पाठभेदके साथ उदधृत पाई जाती हैं, जिनके दो तीन नमूने इस * देखो, जैनहितैपी भाग१३, अंक १२, पृष्ठ ५३०-३१। प्रकार हैं:

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