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श्रीकुन्दकुन्द और यतिवृषभमें पूर्ववर्ती कौन ?
(सम्पादकीय) जैन समाजके प्राचीन प्रधान ग्रंथकारों- आता है जिसे त्रिलोकप्रज्ञप्तिका परिमाण बतलाया
" में श्री 'कुन्दकुन्द' और 'यतिवृषभ' गया हैनामक आचार्यों के नाम खास तौरसे उल्लेखनीय हैं । कुन्दकुन्दकं रचे हुए प्रवचनसार, पंचाम्तिकाय,
चुरिणसरूवं अत्थं करणसमयसार, नियमसार, द्वादशानुप्रेक्षा और दर्शन
सरुवप्पमाण होदि कि जत्तं। प्राभूतादि प्राकृत ग्रंथ प्रसिद्ध हैं, जिनमें से अहसहस्सपमाणं कितने ही तो संसारको अपने गुणोंसे बहुत ही मुग्ध
तिलोयपएणत्तिणामाए । कर रहे हैं । यतिवृषभके ग्रंथ अभी तक बहुत ही 'करणस्वरूप' ग्रंथ अभी तक उपलब्ध नहीं कम प्रकाश में आए है, फिर भी उनमें मुख्यतया हुआ। बहुत सम्भव है कि यह ग्रंथ उन करणसूत्रोंतीन प्राकृत ग्रंथोंका पता चलता है-एक तो काही समूह हो जो गणितसूत्र कहलाते हैं और गुणधराचार्य के 'कसायपाहड' की चूर्णि है, जिनका कितना ही उल्लेख त्रिलोकप्रज्ञप्ति. गोम्मटजिसकी सूत्रसंख्या छह हजार श्लोक-परिमाण है सार, त्रिलोकसार और धवला जैसे ग्रंथों में पाया
और जिसे साथमें लेकर ही वीरसेन-जिनसेनाचार्योंने उक्त पाहड पर 'जयधवला' नामकी विशाल टीका लिखी है; दूसरा ग्रंथ 'त्रिलोक- पर्ववर्ती कौन है और उत्तरवर्ती कौन ?
__ अब प्रश्न यह है कि इन दोनों प्राचार्यों में प्रज्ञप्ति' है, जिसकी संख्या आठ हजार श्लोकपरिमाण है और जिसका प्रकाशन भी जैन
___ इन्द्रनन्दीने अपने 'श्रुतावतार' में, 'पट्खण्डासिद्धान्त-भास्कर में शुरु होगया है ; तीसरा ग्रंथ है
गम' सिद्धान्तकी उत्पत्तिका वर्णन देकर, द्वितीय 'करणस्वरूप', जिसका उल्लेख त्रिलोकप्रमिक सिद्धान्तग्रंथ 'कषायप्राभृत' की उत्पत्तिको बतलाते अन्तके निम्न वाक्यमें पाया जाता है और हुए लिखा है कि-गुणधराचार्य ने इस ग्रंथकी उसपरसं जिसका परिमाण भी दो हजार श्लोक- मूल-गाथाओं तथा विवरण-गाथाओंको रचकर उन्हें जितना जान पड़ता है। क्योंकि इस परिमाणको नागहस्ति और आर्यमंक्ष नामके मुनियोंको व्याख्या चूर्णिसूत्रके परिमाण (६ हज़ार) के साथ जोड़ करके बतला दिया था। उन दोनों मुनियोंके पाससे देनेसे ही आठ हजार श्लोकका वह परिमाण यतिवृषभने उक्त सूत्रगाथाओंका अध्ययन करके