Book Title: Anand Author(s): Amarmuni Publisher: Sugal and Damani Chennai View full book textPage 9
________________ सम्पादित कर "अपरिग्रह दर्शन" के रूप में सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा से प्रकाशित करवाया । उपरोक्त पुस्तक का समय-समय पर मैंने पारायण किया तथा मन में संकल्प जगा कि इसे नवीन रूप में पुनः प्रकाशित करवाना चाहिये । आचार्य श्री माँ चन्दना जी से मन की बात कही तो उन्होंने सहज ही में स्वीकृति प्रदान कर हमे कृतार्थ किया । हम आभारी हैं आचार्य श्री जी के । आशा ही नहीं अपितु विश्वास है कि इस पुस्तक का अध्ययन कर जन-जन जैन दर्शन के अपरिग्रह के सार्वभौम सिद्धान्त से परिचित होगा तथा आकांक्षाओं एवं इच्छाओं के दल-दल से अपने जीवन को विमुक्त रखते हुए अपने जीवन को आनन्द के राजमार्ग की ओर अग्रसर करेगा । आपको यह कृति क्या प्रेरणा प्रदान करती है तथा इस कृति को पढ़कर आपके जीवन में क्या परिवर्तन आता है ? मुझे यह जानकारी प्रदान करते रहेंगे तो मैं अपने प्रयास को सार्थक समझूगा । मैं अपने सहभागी श्री जी. एन. दमाणी, श्री आर. एन. दमाणी, श्री प्रवीणभाई छेडा, श्री किशोर अजमेरा एवं मेरे सुपुत्र चि. प्रसन्नचन्द, चि. विनोद कुमार का भी आभार प्रकट करूंगा कि उन्होंने मुझे प्रोत्साहित किया तथा पुस्तक मुद्रण करवाने में हार्दिक सहयोग प्रदान किया। - N. सुगालचन्द जैन चेन्नई viiiPage Navigation
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