Book Title: Alankardappan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 11
________________ VI रीतिकालीन आचार्यों का श्लेष निरूपण दण्डी, मम्मट, जयदेव और अप्पय दीक्षित से अनुप्राणित है। अलंकार दर्पणकार ने श्लेष को पृथक् अलंकार न मानकर उसे उपमा का भेद माना है। अलंकारदर्पणकार के दरविकलोपमा और एकक्रमोपमा भी नये भेद हैं। ये भेद अन्यत्र नहीं मिलते। एकक्रमोपमा को एकावली से नहीं मिलाया जा सकता है। एकावली अलंकार के जनक आचार्य रुद्रट हैं, जिन्होंने अर्थों की परम्परा को उत्तरोत्तर उत्कृष्ट किये जाने के उद्देश्य से इसकी स्थापना की है। भोज ने परिकर अलंकार के अन्तर्गत एकावली को संयोजित किया। मम्मट ने वीप्सा के विशेषणभाव से उसे जोड़ा और रुय्यक, विद्याधर, विद्यानाथ और विश्वनाथ ने उसका अनुकरण किया। अलंकारदर्पण में परिकर और एकावली दोनों अलंकार नहीं मिलते। उपमा में ही उनका समायोजन कर दिया गया है। अलंकारदर्पण के निन्दाप्रशंसोपमा और तल्लिप्सोपमा भी अपने ढंग के भेद हैं। दण्डी ने निन्दोपमा तथा प्रशंसोपमा को पृथक्-पृथक् किया है। निन्दाप्रशंसोपमा को व्याजस्तुति में भी सम्मिलित नहीं किया जा सकता है। अलंकारदर्पण में भी ऐसा कोई अलंकार नहीं है। निन्दोपमा और अतिशयितोपमा को भी इसी तरह अन्यत्र देखा जा सकता है। श्रुतमिलिता तथा विकल्पिता भी उल्लेखनीय हैं। अतिशयोपमा को दण्डी ने उपमाभेद के रूप में माना है और विकल्पिता उपमा को भरत के उपमाभेदों में देखा जा सकता है। रूपक का लक्षण अलंकारदर्पणकार ने भामह के आधार पर किया है जहाँ गुणसाम्य तथा उपमेयोपमान के अभेदत्व को प्रधान तत्त्व स्वीकारा गया है। इस सन्दर्भ में दण्डी ने ताद्रूप्यप्रतीति, उद्भट ने गुणवृत्तिप्राधान्य, रुद्रट ने उपमेय - उपमान के बीच गुणसाम्य - अभेदत्व, कुन्तक ने सादृश्यमूला गौणीलक्षणा, भोज ने गौणीवृत्ति, और मम्मट ने अभेदारोपण को आधार बनाया है। परवर्ती आचार्यों ने प्रायः मम्मट का अनुकरण किया है । मम्मट के सांगभेद के समस्तवस्तुविषयक और एक देशविवर्ती रूपक अलंकारदर्पणकार के सकलवस्तुरूपक तथा एकैक देश रूपक हैं। यहाँ यह भेद दृष्टव्य है कि रूपक में उपमेय पर उपमान का आरोपण किया जाता है जो निश्चितता की ओर संकेत करता है, पर उत्प्रेक्षा में अनिश्चय का भाव रहता है। इसी तरह निरंगमालारूपक में आरोपण मात्र होता है, अनेकधा कथन नहीं, जबकि उल्लेख में उसका अनेक रूपों में अवस्थिति का कथन होता है। सादृश्यमूलक दीपक अलंकार दीपक न्याय पर आधारित है। इसमें कुछ पदार्थ प्रस्तुत होते हैं और कुछ अप्रस्तुत। यहाँ जो औपम्य या सादृश्य अर्थ होता है, वह इवादि शब्दों द्वारा सूचित नहीं होता। यह गम्यौपम्यमूलक अलंकार है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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