Book Title: Alankardappan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith
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अलंकारदप्पण 'ऊर्जापहव-इतः प्रेमातिशय उदात्तपरिवृत्ताः । द्रव्योत्तरक्रियोत्तरगुणोत्तराः
बहुश्लेषाश्च ।।७।। ऊर्जा, अपह्रव, प्रेमातिशय, उदात्त, परिवृत्त (परिवृत्तिः) द्रव्योत्तर, क्रियोत्तर, गुणोत्तर अनेक प्रकार के श्लेष अलंकार ।
बवएस-थुई (इ) समजोइआ-इअ-अपत्थु अप्पसंसा । अणुमाणमाअरिसो उपेक्खा तह अ संसिट्ठी ।।८।। व्यपदेशस्तुतिः समयोगिता इत अप्रस्तुतप्रशंसा च । अनुमानमादर्श उत्प्रेक्षा तथा च संसृष्टिः ।।८।।
व्यपदेशस्तुति (व्याजस्तुति), समयोगिता (तुल्ययोगिता), अप्रस्तुतप्रशंसा, अनुमान, आदर्श, उत्प्रेक्षा और संसृष्टिः ।
आसीसा उवमारूवआ च जाणइ णिअरिसिणं तह अ। उपेक्खा वअवो भेअ-वलिअ-जमएहि संजुत्ता ।।९।। आशीरुपमा रूपकं च जानीत निदर्शनं तथा च । उत्प्रेक्षा च उद्धेदवलितयमकैः संयुक्ता ।।९।।
आशीष, उपमारूपक, निदर्शन, उत्प्रेक्षा उद्भेद, वलित और यमक अलंकार को जानो।
एत्तिअ मित्ता एए कव्वेसु पडिडिआ अलंकारा । अहिआ उवक्कमेणं वीसाओ दोण्णि संखाउ ।।१०।। एतावन्मात्रा एते काव्येषु प्रतिष्ठिता अलंकाराः ।
अभिहिता उपक्रमेण विंशती द्वे संख्याताः ।।१०।। काव्यों में इतने (पूर्वोक्त) ही अलंकार प्रतिष्ठित और स्वीकृत हैं जो क्रमानुसार संख्या में चालीस हैं । उनका क्रमश: वर्णन किया जायेगा। उपमा अलंकार
उवमाणेणं जा देस-काल-किरिआवरोह-पडिएणं । उवमेअस्स सरिसं लहइ गुणेणं खु सा उवमा ।।११।। उपमानेन या देशकालक्रियावरोधप्रतीपेन । उपमेयस्य सदृशतां लभते गुणेन खलु सा उपमा ।।११।।
1. "ऊर्जशब्दोऽदन्तः सान्तश्च' रामाश्रयी टीका
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