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अलंकारदप्पण प्रथम पंक्ति की छाया होगी- निष्पापारीकृतभुवनमण्डल:- पापा: अरयः इति पारय: निर्गताः पापारय: यस्मात् तत् निष्पापारि अनिष्पापारि निष्पापारि कृतम् इति निष्पापापारीकृतम् निष्पापापारीकृतं भुवनमण्डलं येन सः । संपूर्णोपमा तथा गूढोपमा के लक्षण
ण हु ऊणा ण हु अहिआ जा जाअइ सा हु होई संपुण्णा। जा उण समास-लीणा सा गूढा भण्णए उवमा ।।२२।। न खलु ऊना न हु अधिका या जायते सा हु भवति संपूर्णा । या पुनः समासलीना सा . गूढ़ा भण्यते उपमा ।।२२।।
उक्त कारिका में संपूर्णोपमा तथा गूढोपमा के लक्षण दिये गए हैं । सम्पूर्णा उपमा वह होती है जिसमें (उपमान) न तो न्यून हो और न अधिक हो । जो उपमा समासयुक्त हो वह गूढोपमा होती है। संपुण्णा जहा (सम्पूर्णा यथा)
सोहसि वअणेण तुमं केअइ-कण्णुल्लिआ-सणाहेण । कमलेण वि पासहिअण मुद्धअ (ड)-हंसेण पसअस्थि ।।२३।। शोभसे वदनेन त्वं केतकीकर्णिकासनाथेन । कमलेनेव पार्श्वस्थितेन मुग्धहसेन प्रशस्तः ।। २३।।
भोले हंस से शोभित समीपस्थ कमल के सदृश केतकी पुष्प के तालपत्र से युक्त मुख से तुम सुशोभित हो ।
यहाँ पर केतकी का तालपत्र लगाए नायिका का मुख उपमेय है तथा हंस से युक्त कमल उपमान है । उपमान उपमेय दोनों पक्ष न एक दूसरे से बढ़कर है और न कम। अत: संपूर्णोपमा है । 'कण्णुल्लिआ' की छाया कर्णिका है। कर्णिका का अर्थ तालपत्र होता है। 'कर्णिका तालपत्रं स्यात्'-इत्यमरः । तालपत्र कर्णाभरण (कनफूल) को कहते हैं ग्रन्थकारका सम्पूर्णोपमा का स्वरूप संस्कृत आलंकारिकों के लक्षण से मेल नहीं खात क्योंकि संस्कृत अलंकारशास्त्र में पूर्णोपमा उसे कहते हैं जिसमें उपमा के चारों अंगउपमान,उपमेय, साधारण धर्म तथा वाचकपद विद्यमान रहते हैं । इनमें से एक के न रहने पर लुप्तोपमा हो जाती है। गूढोवमा जहा (गूढोपमा यथा)
कह पाविहिसि किसोअरि दइअं थण-अलस-खेअ-णीससिरि । रंभा गम्भोअर-णिअंब-भार-मसिणेण गमणेण ।। २४।' कथं प्रत्येष्यसि कृशोदरि दयितं स्तनालसखेदनसश्रीके । रम्भागोरुनितम्बभार मसृणेन
गमनेन ।। २४।।
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