Book Title: Alankardappan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 64
________________ अलंकारदप्पण अलंकारदप्पणकार ने जिसे परिवृत्त नाम दिया है उसी को अन्य आलंकारिक 'परिवृत्ति' कहते हैं । परिवृत्ति अलंकार में दान और ग्रहण का विनिमय होता है आर्थानां यो विनिमयः परिवृत्तिस्तु सा यथा । काव्यादर्श २/३५१ अब समृद्धिमूलक उदात्त अलंकार का उदाहरण देते हैं - रिद्धी उदत्तो जहा (ऋद्धिउदात्तो यथा) तुह णर-सेहर! विप्फुरिअ-रअण-करिण(किरण) णिअर-णासिअ-तमाइं। भिच्चाण-वि दीव-सिहा-मइलाइं ण होन्ति भवणाई ।।१३।। तव नरशेखर ! विस्फुरितरत्नकिरणनिकरनाशिततमांसि । भृत्यानामपि दीपशिखामलिनानि न भवन्ति भवनानि ।।९३।। हे राजन् ! फैली हुई रत्न किरण राशि से नष्ट अन्धकार वाले तुम्हारे भवन भृत्यों के (द्वारा प्रकाशार्थ जलाए गए) दीपकों की लौ से निकलने वाले कज्जल से भी मलिन नहीं होते हैं।' यहाँ पर प्रभूत रत्नराशिके कारण तमोविनाश का वर्णन एक असाधारण समृद्धि का प्रकाशन होने से ऋद्धि-उदात्त अलंकार है । महाणुभाव जाइ उदत्तो जहा (महानुभावजाति-उदात्तो यथा) वेल्लहल-रमण(णि)-थणहर-पडिपेल्लिअ-विअड-वच्छ-पीढा-वि। ण चलंति महासत्ता मअणस्स सिरे परं काउं ।।१४।। कोमलरमणीस्तनधरपरिपीडितविकटवक्षःपीठाअपि न चलन्ति महासत्त्वा मदनस्य शिरसि पदं कर्तुम् ।।१४।। कोमल रमणियों के उर: स्थलों से परिपीडित विशाल वक्षःस्थल वाले भी महासत्त्वशाली लोग कामदेव के सिर पर पैर रखने से विचलित नहीं होते । अर्थात् विलास की सामग्री होने पर भी कामजयी होते हैं। 'वेल्लहल' शब्द 'पाइअसद्दमहण्णवो' के अनुसार देशी शब्द है इसका अर्थ है - कोमल, विलासी । “वेल्लहलो मउअविलासीसुं" देशीनाममाला VII/96 यहाँ महासत्त्वशाली लोगों की स्वाभाविक उदात्तता का वर्णन होने से उदात्तालंकार है। अब परिवृत्त (परिवृत्ति) अलंकार का उदाहरण प्रस्तुत है - परिअत्तो जहा (परिवृत्तो यथा) ससिमुहि!मुह-पंकअ-कन्ति-पसर-करणक्कम-विलासेण । दिद्धिं दाऊण तओ गहिआइं जुआण हिअआई ।।९५।। शशिमुखि ! मुखपङ्कजकान्तिप्रसरकरणक्रमविलासेन । दृष्टिं दत्त्वा ततो गृहीतानि यूनां हृदयानि ।।९५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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