Book Title: Alankardappan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 65
________________ ४० अलंकारदप्पण हे चन्द्रमुखी ! तुमने मुखकमल की कान्ति के प्रसार तथा इन्द्रियों के क्रमानुसार विलास से (युवकों को) दृष्टि दान कर युवकों के हृदयों को ग्रहण कर लिया है । अर्थात् नायिका की सविलास दृष्टि से युवकजनों के चित्त उसकी तरफ आकृष्ट हो गए हैं । यहाँ पर नायिका ने दृष्टि देकर युवकों के हृदय को लिया है। इस प्रकार परस्पर विनिमय (आदान-प्रदान) के कारण परिवृत्त (परिवृत्ति) अलंकार है । 'विलास' शब्द इस श्लोक में परिभाषित किया गया है प्रियदर्शनकाले तु नेत्रभूवक्त्रकर्मणाम् । विकारो य स धीमद्भिर्विलास इति कथ्यते ।। ग्रन्थकार ने जिसे 'परिवर्त' अलंकार कहा है उसे ही दण्डी आदि आचार्य ‘परिवृत्ति' अलंकार कहते हैं - अर्थानां यो विनिमयः परिवृत्तिस्तु सा यथा । काव्यादर्श। परिवृत्तिर्विनिमयो योऽर्थानां स्यात् समासमैः ।। काव्यप्रकाश। द्रव्योत्तर, क्रियोत्तर तथा गुणोत्तर अलंकार का लक्षण दव्य-किरिआ-गुणाणं पहाणआ जेसु कीरइ कईहिं । दव्युत्तर-किरिउत्तर-गुणुत्तरा ते अलंकारा ।।९६।। द्रव्यक्रियागुणानां प्रधानता येषु क्रियते कविभिः । द्रव्योत्तर क्रियोत्तर गुणोत्तरास्ते अलंकाराः ।।९६।। जहाँ कवियों द्वारा द्रव्य, क्रिया या गुणों की प्रधानता वर्णित की जाती है वहाँ क्रमश: द्रव्योत्तर, क्रियोत्तर तथा गणोत्तर अलंकार होते हैं। ये तीनों अलंकार संस्कृत के किसी भी अन्य आलंकारिकों को मान्य नहीं हैं । अब क्रमश: उक्त अलंकारों का उदाहरण देते हुए कहते हैं - दव्युत्तरो जहा (द्रव्योत्तरो यथा) वर-करि-तुरंग-मंदिर-आणाअर-सेवअ-कणअ-रअणाई। चिंतिअ-मेत्ताई चिअ हवंति देवे पसण्णम्मि ।।९७।। वरकरितुरङ्गमन्दिराज्ञाकरसेवककनकरलानि । चिन्तितमात्राणि चैव भवन्ति देवे प्रसन्ने ।। ९७।। राजा के प्रसन्न होने पर अथवा देवता के प्रसन्न होने पर श्रेष्ठ हाथी, घोड़े, महल, आज्ञाकारी सेवक, सुवर्ण और रत्न चिन्तनमात्र से मिल जाते हैं। यहाँ पर पूर्वार्द्ध में सभी द्रव्यवाचक शब्द हैं । इन्हीं की प्रधानता के कारण द्रव्योत्तर अलंकार है । वस्तुतः इस अलंकार का अन्तर्भाव आचार्य मम्मट के क्रियादीपक अलंकार १. “देव हषीके के देवस्तु नृपतौ तोयदे सुरे” इति हैम: ।२/५/३८। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82