Book Title: Alankardappan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 80
________________ ५५ अलंकारदप्पण यहाँ पर चारों पादों में 'साहसिआ' के रहने से सकलपद यमक है। अंसे विऊण असेसाणं होंति समग्ग अधिणो कव्वे । तेण वि अण्णो भावो पएसो चेअ दट्ठव्यो ।।१३४।। अंशान् विज्ञायाशेषाणां भवन्ति समग्राधीनाः काव्ये । तेनाप्यन्यो भावः प्रदेशश्चैव द्रष्टव्यः ।।१३४।। काव्य में (अलंकारों के) अंश को जानकर समग्र का ज्ञान हो जाता है। इसी प्रकार अन्य (अलंकारों की) सत्ता और उनका विभाजन भी देखना चाहिये । इति अलंकारदप्पणं सम्मत्तं शुभं भवतु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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