Book Title: Alankardappan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

View full book text
Previous | Next

Page 44
________________ अलंकारदप्पण क्रिया का जसो 'वीरिमा', 'ईहिअं', 'दुम्मई', 'भअं' इन सभी के साथ अन्वय होने से दीपक अलंकार है । खलिज्जई पद के वाक्य के मध्य में होने से मध्यदीपक है । अन्तदीविरं जहा- (अन्तदीपकं यथा) । सत्येण बुहा दाणेण पत्थिवा गुरु-तवेण जइणिवहा । रण-साहसेण सहडा मही-अले पाअडा होति ।।४९।। शास्त्रेण बुधा दानेन पार्थिवा गुरुतपसा यतिनिवहाः । रणसाहसेन सुभटा महीतले प्रावृता भवन्ति ।। ४९।। शास्त्र से विद्वान, दान से राजा, उग्र तपस्या से यति (संयमी) समूह, युद्ध में साहस से सुयोद्धा पृथ्वी में छाए रहते हैं। यहाँ पर पाअडा (प्रावृताः) इस एक पद के 'बद्धा' 'पत्थिवा' 'जइणिवहा' 'सहडा' के साथ अन्वित होने से दीपक अलंकार है तथा इस पद (पाअडा) के वाक्य के अन्त में स्थित होने से अन्तदीपक है। आचार्य मम्मट ने दीपक अलंकार का यह लक्षण दिया है - सकृद्वत्तिस्तु धर्मस्य प्रकृताप्रकृतात्मनाम् । सैव क्रियास बहीषु कारकस्येति दीपकम् ।। का.प्र. प्राकरणिक तथा अप्राकरणिक का एक धर्म से सम्बन्ध होना दीपक अलंकार है । यदि एक ही क्रिया सभी कारकों से सम्बद्ध हो तो क्रिया दीपक और यदि एक 'कारक' अनेक क्रियाओं से अन्वित हो तो कारक दीपक कहलाता है। __अलंकारदप्पणकार ने उक्त भेदों को न स्वीकार कर केवल सभी के साथ अन्वित होने वाले एक पद की आदि मध्य अथवा अन्त में स्थिति के अनुसार आदि दीपक, मध्यदीपक तथा अन्तदीपक माना है । आचार्य दण्डी तथा भामह ने भी आदि मध्य और अन्त दीपक स्वीकार किया है - इत्यादिदीपकान्युक्तान्येवं मध्यान्तयोरपि । वाक्ययोर्दयिष्यामः कानिचित् तानि तद्यथा ।। काव्यादर्श-२/१०२ इसके बाद रोध' और 'अनुप्रास' इन दो अलंकारों का लक्षण देते हैं। रोध अलंकार अद्ध भणि णिसंभइ जस्सिं जुत्तीअ होइ सो रोहो । पअ-वण्ण-भेअ-भिण्णो जाअइ दुविहो अणुप्पासो ।।५।। अर्द्धभणितं निरुध्यते यस्मिन् युक्त्या भवति स रोषः। पदवर्णभेदभिन्नो जायते द्विविधोऽनुप्रासः ।।५।। जहां पर आधी कही बात को किसी युक्ति के द्वारा रोक दिया जाता है वह रोध अलंकार हैं। पद और वर्ण के भेद से अनुप्रास अलंकार दो प्रकार का होता है। अलंकारदप्पणकार उपमा, रूपक और दीपक अलंकारों के विवेचन के अनन्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82