Book Title: Alankardappan
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 48
________________ अलंकारदप्पण २३ विशेषालंकार का यह लक्षण आचार्य मम्मट के विशेषलक्षण के तृतीय भेद से साम्य रखता है । मम्मट का लक्षण इस प्रकार है - - विना प्रसिद्धामाधारमाधेयस्य व्यवस्थितिः । एकात्मा युगपद् वृत्तिरेकस्यानेकगोचरा ।। अन्यत्प्रकुर्वतः कार्यमशक्यस्यान्यवस्तुनः । तथैव करणं चेति विशेषस्मिविधः आक्षेप अलंकार का लक्षण स्मृतः ।। काव्यप्रकाश १०/१३६ ।। जत्य णिसेहो व्व स (सं) सी हिअ कीरइ विसेस - तण्हाए । सो अक्खेवो दुविहो होन्ता एक्कन्त भेभेण ।। ५८ ।। यत्र निषेध इव शंसितस्य क्रियते विशेषतृष्णया । स आक्षेपो द्विविधो भविष्यदेकान्त - भेदेन ।। ५८ । । जहाँ विशेष (कथन करने) की लालसा से विवक्षित बात का निषेध-सा किया जाता है वहाँ आक्षेप अलंकार होता है और यह आक्षेप भविष्यमाण और एकान्त भेद से दो प्रकार का होता है । कभी वक्ष्यमाण विषय का निषेध किया जाता है और कभी उक्तविषय का। इस प्रकार दो भेद होते हैं 1 होंतक्खेओ जहा (भविष्यदाक्षेपो यथा) जड़ वच्चसि तह वच्चसु महु गरुअदा (दी) ह-विरहग्गि- तविअ - तणुए । वच्चइ तइ समअं चिञ अहवा कह जंपिअं एसा ।। ५९ ।। यदि व्रजसि तदा ब्रज मधुगुरुविरहाग्नितापित तनुक । व्रजति ते समय एव अथवा कथं जल्पितमेतत् ।। ५९ ।। प्रवस्यत्पतिका नायिका परदेश जाने को उद्यत नायक से कहती है । बसन्तऋतु में प्रचण्डदाह वाली विरहाग्नि से शरीर को तप्त करने वाले हे प्रिय ! यदि जाते हो तो जाओ। तुम्हारा (जाने का समय ही बीता जा रहा है तो जाओ, अथवा यह बकवास क्यों की जाये। शोभाकरमित्र के 'अलंकारत्नाकर' में प्रतिपादित विध्याभास अलंकार इससे पर्याप्त साम्य रखता है। उनके विध्याभास का यह उदाहरण है - जइ वच्चसि वच्च तुमं को वा वारेइ तुज्झा गमणस्स । तुह गमणं मह मरणं लिहिअ पसत्तं कतं तेण ।। यदि व्रजसि व्रज त्वं को वा वारयति तव गमनस्य । तव गमनं मम मरणं लिखितप्रसक्तं कृतान्तेन ।। भामह का आक्षेपालंकार लक्षण भी अलंकारदप्पण के लक्षण से तुलनीय हैप्रतिषेध इवेष्टस्य यो विशेषाभिधित्सया । आक्षेप इति तं सन्तः शंसन्ति द्विविधं यथा । । काव्यालंकार २ / ६८ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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