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अलंकारदप्पण लेसोपमा जहा (श्लेषोपमा यथा)
सो संसारो असमो चल पेम्मो जो जणो सुहओ सो किं । भासइ संसाराए णव जो (व्वणवइ) ण रिछोली ।। २७।। स संसारोऽसमश्चलप्रेमा यो जनः सुभगः सः किम् । भासते संसारे नवयौवनवतीनामावलिका ।। २७।। सः संसारोऽसमोऽचलप्रेमा यो जनः सुभगः स किम् । भासते . संसारे नवयौवनवतीनामावालिका ।।२७।।
संसार बड़ा विषम है । जो अचल प्रेम वाला है क्या वह भाग्यशाली है क्योंकि संसार में नवयौवनवती स्त्रियों की पंक्ति ही दिखाई देती है । 'दरविकला' तथा 'एकक्रमा' उपमा का लक्षण
सुसरिसमा पखेवं विअलइ सच्चेव होइ दरविअला । एक्कक्कमोवमाणेहिं होइ एक्कक्कमा णाम ।। २८।। सुरसरित्समा प्रक्षेपं विचलति सैव भवति दरविचला । एकक्रमोपमानैः भवत्येकक्रमा
नाम ।।२८।। जो अच्छी नदी के समान उसमें फेंकी गई वस्तु को थोड़ा विचलित कर देती है वही दरविचला (दरविकला) उपमा होती है और एक क्रम से उपनिबद्ध उपमानों से एकक्रमोपमा होती है। दरविअला जहा (दरविकला यथा)
पीणस्थणी सरूआ पह-पेसिअ-लोअणा स-उक्कंठा । लिहिय-व्व दार-लग्गा ण चलइ तुह दंसणासाए ।।२९।। पीनस्तनी सरूपा पथप्रेषितलोचना सोत्कण्ठा । लिखितेव द्वारलग्ना न चलति तव दर्शनाशायै ।। २९।।
तुम्हारे दर्शन की आशा के कारण द्वार पर खड़ी पीनस्तनी, रूपवती मार्ग में आँखें विछाए हुई, उत्कण्ठित (नायिका) द्वार पर चित्रलिखित के समान नहीं चलती अर्थात् निश्चल भाव से प्रतीक्षा कर रही है।
यहाँ पर चित्रलिखित के समान नायिका को बताया गया है। साम्य केवल नायिका के निश्चल भाव का ही है अन्य पीनस्तनत्व, उत्कण्ठात्व, प्रेषितलोचनत्व आदि का नहीं। अत: यह दरविकला उपमा है । दर का अर्थ है 'भय' या थोड़ा (ईषत्), विकल का अर्थ है म्लान, अवसन्न, स्फूर्तिहीन इत्यादि। इस प्रकार दरविकला का शाब्दिक अर्थ है भय के कारण म्लान अथवा ईषत् अवसन्न । ऐसी स्थिति में उक्त श्लोक में अपने प्रिय की प्रतीक्षा करती हुई नायिका की उपमा है । इसलिये नायिका की अवस्था विशेष के अनुसार भी दरविकला' उपमा नाम दिया गया है।
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