Book Title: Agnantimirbhaskar Author(s): Vijayanandsuri Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 12
________________ (G) अनन्य प्रेम , अने तेमन जीवन गुरु नक्तिमय छे. आवा केटलाएक शिष्य वर्गना गुणोने लश्ने तेस्वर्गवासी पूज्यपादना ले. खनी आवृत्ति करवानो आ समय आव्यो . अने तेमना नपदेश द्वारा लोकोमां तेनोप्रसार करवानी पण नत्तम तक मली . आ ग्रंथ प्रथम आ शहेरना रहेनार मरदुम गुरुराजना परम नक्तोनी बनेली श्री जैन हितेच्छ सन्नाए बहार पामेलो हतो जेनी एक पण कोपी हालमां नहीं मलवायी मरहुम गुरुराजना परिवार मंडलनी आझा श्रवाश्री अने ते सन्नाना आगेवान सन्नासदोनी परवानगीश्री आ बीजी आवृत्ति सुधारा साथे अमोए बहार पाडेली छे. आ बीजी आवृत्तिमां जुदा जुदा विषयोना नाग पामी अने जे जे वैदिक प्रमाणो अर्थ रहित हतां तेमना अर्थ दीवी ग्रंथना स्वरूपने शोन्नाव्युं छे. ते साधे वाचकोने सुगमता थवाने विषयोनी अनुक्रमणिका पण आपी बे. आ ग्रंथ आयंत तपासी आपवामां एक विद्वान् मुनि महाराजाए जे श्रम लीधो ने तेने माटे आ सना अंतःकरगायी आन्नार माने . ग्रंथनी शुश्ता अने निर्दोषता करवामां सावधानी राख्या उतां कदि कोइ स्थले दृष्टिदोषथी के प्रमादयी स्खलना थ होय तो तेने माटे मिथ्या उप्कृत . संवत १९६२. ज्येष्ठ कृष्ण ज. श्री आत्मानंद सभा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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