Book Title: Agnantimirbhaskar Author(s): Vijayanandsuri Publisher: Atmanand Jain SabhaPage 10
________________ खुल्लु करी जैन धर्मना तत्त्व स्वरूपने सर्वोपरि सिह करवामां आव्युं . ग्रंथना पूर्व नागमां आस्तिक अने नास्तिक मतना विचार, जैन धर्मनी प्रबलताश्री वैदिक हिंसानो परान्नव, वेदना विनाग, वेदज्ञ ऋषिोना मांसाहारनुं प्रतिपादन, वैदिक यज्ञ कर्मनो विवेद, वैदिक हिंसा विषे विवध मत, शांकर नाष्य रचवानो हेतु, अने शंकराचार्यनो वाम मार्ग इत्यादि घणा विषयोनुं स्पष्टीकरण करी, तेमज वेद, स्मृति, उपनीषद् अने पुराणादि शास्त्रोमां दर्शावेल यज्ञ विगेरेनुं स्वरुप वर्णवी अने मिथ्यात्व नरेली तद्गत अज्ञानता दर्शावी सारं विवेचन करनार आ विश्वासलायक ग्रंथ तो अर्वाचीन जैन ग्रंथोमां एकज ने, एम कहवामां कांपण अतिशयोक्ति नथी. वली बौछ, नैयायिक, सांख्य, जैमिनेय आदि दर्शनवालाओ मुक्तिना स्वरूपने केवी रीते कथन करे ? तथा ईश्वरमां सर्वज्ञपणानी सिदि करवा तेओ केवी युक्तिओ दर्शावे ठे? तेनुं यथार्थ जान करावी ग्रंथकारे घणु पांडित्य नरेलुं विवेचन करेलु , जे वांचवाथी जैन बंधुओने नारतवर्षमा प्रसरेला गाढ मिथ्यात्व, स्वरूप जणाइ पोताना शुद्ध झान, दर्शन, चारित्र रूप सनातन धर्मनी नपर सारी दृढता नत्पन्न थाय तेम . ग्रंथना बीजा नागमां साधु अने श्रावकनी धर्म योग्यता दीववा माटे एकवीश गुणोनुं विस्तारथी वर्णन, नावश्रावकना षट्छार संबंधी सत्यावीश नेद अने तेमना सत्तर गुणोनुं स्वरूप विवेचन सहित आपवामां आव्युं . ते साथे स्याहाद सितना ग्रंथोमां आत्मानुं स्वरूप जणाववा माटे जे जे लखवामां आव्यु डे, ते जाणवु धणुं उर्घट होवाथी तत्त्वजिज्ञासुओ तेनुं स्वरूप यथार्थ जाणी शकता नश्री, तेश्री तेमने सुगम रीते जाणवा माटे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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