Book Title: Agnantimirbhaskar
Author(s): Vijayanandsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 9
________________ ___“जेम घाटा अंधकारमा मग्न अयेलाने सूर्य प्रकाश कर्ता चे, तेम आ संसारमा अज्ञानरुपी अंधकारमा पमेलाने गुरु प्रकाश ' कर्ता . आवा यथार्थ गुरुपणाने धारण करनारा परम नपकारी पूज्यपाद गुरु श्री विजयानंदसूरि (आत्मारामजी) ए नारत वर्षनी जैन प्रजानो ते अज्ञानरुप अंधकारथी नहार करवाने माटे श्रा लेख लखेलो . ते महाशयना लेख प्रथमश्रीज प्रशंसनीय थता आवे . आईत धर्मना तत्वोनी जे नावना तेमना मगजमा जन्म पामेली, ते लेख रुपे बाहेर आवतांज अाखी बुनियाना पंमितो, ज्ञानीनो, शोधको, शास्त्रझो, धर्मगुरुयो, लेखको अने सामान्य लोको उपर जे असर करे , तेज तेनी सप्लारता अने नपयोगिता दर्शाववाने पूर्ण के. मिथ्यात्वजनित अज्ञानताने लश्ने अन्यमति नारतवासिीओ सनातन जैन धर्म नपर जेजे आदप कर्या ने अने करे ने तथा वेदादिग्रंथोना स्वकपोल कल्पित अर्थ करी जे जे लेख द्वारा प्रयत्नो कयाँ ने ते न्याय अने युक्ति पूर्वक ते ते ग्रंथोनुं मथन करी या ग्रंथमां स्पष्ट रीते दर्शाववामां आव्युं . अने जैन दर्शननी क्रिया तथा प्रवर्तन सर्व रीते अबाधित अने निदोष , अर्बु जगतना सर्व धार्मिकोनी दृष्टि सिह करी आपेल छे. हंत धर्मनी नावना जुनामां जुनी बतां तेने इतर वादीओ नवी अने कल्पित ठरावी जनसमूहागल मुकवानो यत्न करता आव्याने नेकरे, ते बधुं लक्ष्यमां लश् आप्रवीण ग्रंथकारे ए नावनानी आवश्यकताने आखा विश्वनी प्रवृत्तिथी सिह करवाना यत्न नपरांत ए नावना पोते शुंने ? तेनुं सारी रीते आ ग्रंथमा सूचन करवामां पाठ्यु डे अने ते साधे इतर वादीओना धर्मनी नावनानुं रहस्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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