Book Title: Agnantimirbhaskar
Author(s): Vijayanandsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 7
________________ प्रस्तावना. परोपकार रसिक महात्माओना लेखोनी महत्ता करंक श्र पूर्व होय बे. ते अगाध जंडारना जोक्ता थवानो आधार तेना - ज्यासीना अधिकार नपर रहे बे. उत्तम लेखनुं स्वारस्य ने माहात्म्य प्राश्चर्य जनक बे. ते पुनः पुनः प्रादर पूर्वक प्रन्यासथी ज प्रकट र सुख शांति प्रापे बे. आत्मरुचि श्रने स्वशक्ति अनुसार समर्थ विद्वान्ना योग्य विषयनो अने तेना लेखोनो स्वीकार करी तेनुं आदर पूर्वक श्रवण, पठन अने मनन कर, ए अंते मदा फलदायी थाय बे. जगतमां अनादि · समर्थ जैन दर्शन जणावे वे के, “ श्र कालीज मिथ्यात्व बे. " या शास्त्रीय लेख खरेखरो बे, प्रेम आपणे मानवुं जोइए अने तेम मानवानुं कारण पण श्रापलने प्रत्यक्ष विगेरे प्रमाणोथी सिद्ध थाय बे. ए अनादि कालथी संपर्क पामेला मिथ्यात्वनुं कारण शुं बे ? येवो विचार करतां श्रापलने ज्ञान थशे के, धेनुं खरेखरुं कारण अज्ञान बे. अज्ञान अने मिथ्यात्व ए कार्य कारण रुपे ग्रथित बने रहतुं बे. तेमनो एकी नाव पामेलो वो संबंध वे के, ज्यां प्रज्ञान त्यां मिथ्यात्व ने ज्यां मिथ्यात्व त्यां ज्ञान - द्विपुटी परस्पर एक बीजानी श्राधार भूत थ रहेली बे. श्रावा मिथ्यात्वना कारण रूप अज्ञानने दूर करवानी खास जरुर बे. ए अज्ञान आपला आनंदमय ने सुखमय एवा धार्मिक जीवननुं विरोधी वे शिवपद रूप परम श्रेयनी शोध करवामां ए अज्ञान अंतराय रूप याय बे. इतर धर्मना तत्वज्ञो पोताना विविध मतोथी आ जगत् ईश्वरकृत के अने पूण्य पापनी उत्पत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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