Book Title: Agnantimirbhaskar
Author(s): Vijayanandsuri
Publisher: Atmanand Jain Sabha

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Page 6
________________ RS (शार्दूलविक्रीमित.) जेणे श्रीधन वावियु प्रणयथी श्रीज्ञानना केत्रमां, ग्रंथोशर को सहर्ष हृदये प्रीति धर। नेत्रमां; आनंदे गुरु नक्तिनाव धरतां आराधी सत्कर्मने, धर्मानंद नगीनदास जगमां पामो धरी धर्मने. ॥ १ ॥ जेणे श्री उपधानना वहननी माला धरी अंगमां, एवा चंदनबाइ जे सदनमा रहेछे सदा रंगमां; न्यायोपार्जित वित्तना नियमथी जे शुरूपाम्या मति, ते नीतिज्ञ नगीनदास जगमां श्रीधर्म पामो अति. २ अमे बीए, श्री आत्मानंद सभाना अंगनूत श्रमणोपासको. -9HSMA S mewa mSINA ASEV ARISON Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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