Book Title: Agnantimirbhaskar Author(s): Vijayanandsuri Publisher: Atmanand Jain Sabha View full book textPage 5
________________ RAN श्री अर्पण पत्रिका. श्रीमान श्रावकगुणालंकृत, स्वधर्मनिष्ठ, देवगुरु नक्त, श्री पाटण निवासी, शेठ नगीनदास झवेरचंद. आप श्रावक धर्मना पूर्ण संपादक छो. देवगुरुनी नक्ति रूप नागीरथीमां सदा स्नान करनारा गे, आईत वाणीना नपासक गे, शु६ गुरुना नपदेशथी व्यापारनी प्रवृत्तिमां सदाचारधी वर्ननारा गे अने व्यापारनी प्रवृत्तिमां प्रवीण उतां धर्मनी धुराने धारण करवानो उत्साह राखो गे. ए आदि अनेक सद्गुणोने संपादन करवाना , चिन्हरूप एवा ज्ञान क्षेत्रने पुष्टि प्रापवाने आपे आ ग्रंथने पूर्ण आश्रय आप्यो , एथी करीने नारतवर्षनी जैन प्रजाना महोपकारी श्री विजयानंद सूरिना पाहित्य नरेला लेखने प्रसार करवाना तेमना शिष्य परिवारना नत्तम नपदेशने मान आपी खरेखरी गुरु नक्ति दर्शावी बे; ते आपनी नज्वल प्रवृत्ति जोश अमे आ ग्रंथ आपने अर्पण करीए बीए अने गुरु नक्तियुक्त हृदयथो असाधारण पूज्य नाव पूर्वक ते गुरुनु स्मरण करी नीचे- आशी. र्वादात्मक पद्य नच्चारिए बीए:Hannnnnnnnnnoooonga Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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