Book Title: Agam ek Parichay
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 10
________________ जैन आगम : एक परिचय] माना जाता है और उन्हीं की वाणी आगम है क्योंकि वीतराग होने के कारण उन्हीं की वाणी निर्दोष, पूर्वापरविरोधरहित, सर्वजनहितकारिणी एवं युक्ति तथा प्रमाण से अबाधित होती है। वीतराग भगवान अर्थरूप में उपदेश देते हैं और गणधर उनकी वाणी को ग्रन्थबद्ध अथवा सूत्रबद्ध करते हैं। जैसा कि आवश्यकनियुक्ति (गाथा १९२) में कहा गया है अत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गंथंति गणहरा निउणा। सामणस्स हि यट्ठाए तओ सुत्तं पवत्तइ॥ -अहिरंत अर्थरूप ज्ञान का उपदेश करते हैं, निपुणमति गणधर उसे सूत्ररूप में गूंथते है । इस प्रकार जिनशासन के हितार्थ सूत्र की प्रवर्तना होती है। इसी बात को व्यक्त करने के लिए आगमों में यत्र-तत्र 'तस्स णं अयमठे पण्णत्ते' (भगवान ने उसका यह अर्थ कहा है) इन शब्दों का प्रयोग हुआ है। गणधरों के अतिरिक्त अन्य प्रत्येकबुद्ध, श्रुतकेवली, श्रुतस्थविर एवं चतुर्दश पूर्वधर, दश पूर्वधर श्रमणों द्वारा रचित शास्त्र भी प्रमाणरूप माने जाते हैं, तथा इनकी गणना भी आगमों में की जाती है। गणधर केवल द्वादशांगी की ही रचना करते हैं। शेष आगमों की रचना अन्य श्रुतधर श्रमणों द्वारा की जाती है। इनके प्रमाणत्व का आधार उनकी ज्ञान-वृद्धता के साथ यह भी है कि वे नियमतः सम्यक्दृष्टि एवं यथार्थज्ञानी होते हैं, जिस कारण उनके द्वारा रचित शास्त्रों में द्वादशांगी से कोई विरोध नहीं होता, वे जिन-प्रवचनसम्मत होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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