Book Title: Agam ek Parichay
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 44
________________ जैन आगम : एक परिचय] प्रसंग अंकित हुआ है। __ मूलसूत्र- मूल सूत्र चार हैं - (१) उत्तराध्ययन (२) दशवैकालिक (३) नन्दीसूत्र और (४) अनुयोगद्वार। मूल संज्ञा क्यों?- अनेक चिन्तकों और विद्धानों के मन में यह प्रश्न उठता रहा है कि इन सूत्रों को ही मूल संज्ञा क्यों दी गयी, किसके द्वारा दी गयी और कब दी गयी? पहले ही आगमों के उत्तरवर्ती वर्गीकरण में बताया जा चुका है कि विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में रचे गये प्रभावक चरित्र में इन सूत्रों का मूलसूत्रों के रूप में उल्लेख हुआ है। इससे अधिक स्पष्ट कोई उल्लेख नहीं मिलता। पश्चिमी विद्वान शान्टियर के अभिमतानुसार भगवान महावीर के मूल शब्दों का संकलन होने से ये मूलसूत्र कहलाये। फ्रान्सीसी विद्वान् गेरीनो इन पर अनेक टीका-टिप्पणियाँ लिखी जाने के कारण इन्हें मूलसूत्र मानता है। लेकिन ये दोनों ही मत भ्रान्तिपूर्ण है। यह निश्चित है कि दशवैकालिक आर्य शय्यंभव द्वारा नियूंढ आगम है फिर भी यह मूलसूत्र है और आचारांग तो भगवान महावीर की ही वाणी है, भाषा आदि से भी यह सिद्ध हो चुका है, फिर भी वह मूलसूत्र नहीं माना गया। टीका-टिप्पणी अन्य आगमों पर भी बहुत हैं । अतः पश्चिमी विद्वानों के ये मत मान्य नहीं हैं। सत्य तथ्य यह है कि जिन आगमों में मुख्य रूप से श्रमण के आचार सम्बन्धी मूलगुणों; महाव्रत, समिति, गुप्ति आदि का निरूपण हो, जो श्रमणचर्या में सहायक होते हैं, जिनके द्वारा सम्यक्दर्शन-ज्ञानचारित्र की रत्नत्रयी की सहज प्राप्ति एवं दृढ़ता होती है, जिनको सर्वप्रथम श्रमण के लिए अध्ययन करना अपेक्षित है, वे सूत्र मूलसूत्र कहे गये। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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