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जैन आगम : एक परिचय] भी कहा जाता है । इसमें ७० गाथाएँ है और दस गाथा के बाद कुछ भाग गद्य में भी है।
विषयवस्तु- इसमें सर्वप्रथम पण्डितमरण की विवेचना की गयी है। मरण के तीन प्रकार-बालमरण, बालपण्डितमरण और पण्डितमरण बताये गये हैं। बालमरण करने वाला विराधक और पण्डितमरण करने वाला आराधक होता है, इसे तीन भव में मुक्ति प्राप्त हो जाती है। बालपण्डितमरण की विवेचना करते हुए देशविरत का स्वरूप बताया गया है। इसमें श्रावक के बारहव्रत, संलेखना तथा बालपण्डितमरण वाले जीव की वैमानिक देवों में उत्पति बताकर सात भवों मे मुक्ति बतायी गयी है।
इसके रचयिता वीरभद्र माने गये हैं।
(३) महाप्रत्याख्यान (महापच्चक्खाण)- इसमें सर्वत्र त्याग की विवेचना, चर्चा और उसका महत्व दिखाया गया है। इसमें १४२ गाथाएँ हैं।
विषयवस्तु- प्रारम्भ में तीर्थंकर, जिन, सिद्ध और संयतों को नमस्कार किया गया है और उसके बाद पाप के प्रत्याख्यान की विस्तृत विवेचना है। इसमें विशेष रूप से प्रत्याख्यान और ममत्वत्याग का उपदेश एवं प्रेरणा है।
(४) भक्तपरिज्ञा- इसमें भक्तपरिज्ञामरण का विशेष रूप से वर्णन हुआ है। इसमें १७२ गाथाएँ हैं ।
विषयवस्तु- इसमें भक्तपरिज्ञामरण के भी सविचार और अविचार-दो भेद किये गये हैं। इसमें बताया है कि सम्यग्दृष्टि को ही मुक्ति हो सकती है और मुक्त अवस्था में भी सम्यग्दर्शन साथ
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