Book Title: Agam ek Parichay
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 91
________________ ९० [ जैन आगम : एक परिचय नीति, नयवाद, आत्मवाद, स्याद्वाद, कर्मसिद्धान्त आदि पर विशाल सामग्री का संकलन हुआ है। इसमें जैन सिद्धान्तों की तुलना अन्य दार्शनिकों के सिद्धान्तों से भी की गयी है और तार्किक दृष्टि से जैन सिद्धान्तों का विवेचन हुआ है । आगम रहस्यों को जानने में यह अत्यन्त उपयोगी है। इसमें सर्वप्रथम प्रवचन को नमस्कार किया गया है। उसके पश्चात बताया गया है कि ज्ञान और क्रिया दोनों से मुक्ति प्राप्त होती है। ज्ञान को भाव मंगल बताया है फिर पाँचों ज्ञानों की विस्तृत चर्चा है । अनुयोगों के पृथकीकरण का भी वर्णन है । उसके बाद सातों निन्हवों का उल्लेख है । इसके बाद करेमि भंते सामाइयं के मूल पदों पर चिन्तन है । महत्व - इस भाष्य का भाष्य - साहित्य में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है । इसमें रचयिता की प्रबल तार्किक शक्ति, विवेचन की विशिष्टता, और तलस्पर्शी मेधा का दिग्दर्शन होता है । - (२) जीतकल्पभाष्य- यह भी जिनभद्रगणी क्षमाश्रमण की रचना है। यह एक संग्रह ग्रन्थ है क्योंकि इसमें बृहत्कल्पलघुभाष्य, व्यवहारभाष्य, पंचकल्पमहाभाष्य, पिण्डनिर्युक्ति आदि ग्रन्थों की अनेक गाथाएँ उद्धृत की गयी हैं । मूल जीतकल्प में १०३ गाथाएँ हैं और इस स्वोपज्ञ भाष्य में २६०६ । विषयवस्तु - इस भाष्य में जीत-व्यवहार के आधार पर जो प्रायश्चित्त दिये जाते हैं, उनका वर्णन है । प्रायश्चित्त को एक प्रकार की चिकित्सा बताया गया है । प्रायश्चित्त के प्राकृत में दो रूप मिलते हैं- पायच्छित्त और पच्छित्त । जो पाप का छेद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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