Book Title: Agam ek Parichay
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 100
________________ जैन आगम : एक परिचय ] ९९ उन्नायु ग्राम में हुआ था । इन्होंने राजा भोज की सभा में ८४ वादियों को पराजित करके वादिवेताल की उपाधि प्राप्ति की । इनका स्वर्गवास वि.संवत् १०९६ में गिरनार पर्वत पर हुआ । इन्होंने महाकवि धनपाल की तिलकमंजरी पर एक 'टिप्पण' लिखा तथा जीवविचार प्रकरण, चैत्यवंदन महाभाष्य और उत्तराध्ययनवृत्ति इनकी महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं । (७) द्रोणाचार्य - ये पाटण जैन संघ के प्रमुख थे। इन्होंने नवांगी टीकाकार अभयदेव सूरि की टीकाओं का संशोधन भी किया था। इनका समय विक्रम की ११-१२ वीं शताब्दी है । इन्होंने ओघनियुक्ति व लघुभाष्य पर वृत्ति लिखी है । (८) आचार्य अभयदेव - ये जिनशासन में नवांगी टीकाकार के रूप में प्रसिद्ध हैं । इनका वृत्ति-काल वि.सं. १९२० से ११२८ है। इन्होंने नौ अंगों पर वृत्तियाँ लिखी है। इनका स्वर्गवास वि.सं. ११३५ अथवा १९३९ में हुआ । इसकी रचनाओं से इनके गहन पांडित्य और अनुपम मेधा का प्रमाण मिलता है । (९) आचार्य मलयगिरि - ये उत्कृष्ट प्रतिभा के धनी थे । इन्होंने आगम ग्रन्थों पर महत्वपूर्ण टीकाएँ लिखी हैं। ये जैनागम साहित्य, कर्म सिद्धान्त, गणितशास्त्र, दर्शन आदि के प्रकांड विद्वान थे । विषय की गहनता, भाषा की प्रांजलता, शैली में लालित्य एवं विश्लेषण की स्पष्टता - इनकी रचनाओं की विशेषता है। इन्होंने विपुल परिमाण में साहित्य की रचना की । इनके लिखे निम्न २० ग्रन्थ उपलब्ध है । (१) भगवतीसूत्र द्वितीय शतकवृत्ति (२) राजप्रश्नीयोपांगटीका, For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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