Book Title: Agam ek Parichay
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 88
________________ जैन आगम : एक परिचय ] और किसी ने छेदसूत्र । (१३) पिण्डनिर्युक्ति- दशवैकालिकसूत्र के पाँचवें अध्ययन पिण्डैषणा पर आचार्य भद्रबाहु ने जो निर्युक्ति लिखी यह अधिक लम्बी हो जाने से आचार्यों ने उसे अलग से मान्यता दे दी, वही पिण्डनिर्युक्ति कहलायी । इसमें ६७१ गाथाएँ हैं । ८७ विषयवस्तु - श्रमण के ग्रहण करने योग्य आहार को 'पिण्ड' कहा जाता है। इस नियुक्ति में उसका वर्णन है । इसके आठ अधिकार हैं - ( १ ) उद्गम, (२) उत्पादन, (३) एषणा, (४) संयोजना, (५) प्रमाण, (६) अंगार, (७) धूम, और (८) कारण । इन अधिकारों में इन्हीं नामों से पिण्ड ( श्रमण - आहार) के दोष बताये गये हैं । इस ग्रन्थ में यह बताया गया है कि उपर्युक्त सभी दोषों को टालकर श्रमण को आहार लेना चाहिए । निर्युक्ति साहित्य का महत्व- निर्युक्ति साहित्य बहुत ही महत्वपूर्ण है । आचार्य भद्रबाहु ने निर्युक्तियों की रचना करके जिन - प्रवचन की जो सवा की, वह अविस्मरणीय रहेगी। इसमें उन्होंने जैन-परम्परा के महत्वपूर्ण विशिष्ट पदों की निक्षेप शैली में जो व्याख्या की, वह अपूर्व है । इस व्याख्या से इन पदों का अर्थ निश्चित हो गया और इसी व्याख्या के आधार पर आगे भाष्य, चुर्णि तथा वृत्तियों की रचना हुई । भाष्य - साहित्य भाष्य - साहित्य की आवश्यकता क्यों हुई ? - निर्युक्तियों में मुख्यत: पारिभाषिक और विशिष्ट शब्दों की व्याख्या - विवेचना For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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