Book Title: Agam ek Parichay
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 87
________________ [जैन आगम : एक परिचय (८) व्यवहारनियुक्ति- इस नियुक्ति की विषयवस्तु भी बृहत्कल्पनियुक्ति के समान है। यह नियुक्ति भी भाष्य में विलीन हो चुकी है। (९) संसक्तनियुक्ति- यह नियुक्ति किस आगम पर लिखी गई है, इसका पता नहीं लगता। इसके लेखक के बारे में भी विद्धानों का एकमत नहीं है। कितने ही इसे भद्रबाहु की रचना मानते है तो कितने ही अन्य किसी आचार्य की। (१०) निशीथनियुक्ति- इसमें मुख्य रूप से श्रमणाचार का वर्णन है। यह नियुक्ति भाष्य में मिल गई है। (११) गोविन्दनियुक्ति-यह गोविन्द आचार्य की स्वतन्त्र रचना है। इसका निर्माण एकेन्द्रिय जीवों की संसिद्धि के लिए हुआ था। यह वर्तमान में उपलब्ध नहीं है किन्तु इसका उल्लेख बृहत्कल्पभाष्य, आवश्यकचूर्णि व निशीथचूर्णि में मिलता है। (१२) ओधनियुक्ति- इसमें साधु की सामान्य समाचारी का वर्णन है । इसके रचयिता भद्रबाहु माने गये हैं। विद्वानों ने इसे आवश्यकसूत्र का ही एक अंग माना है। इसमें ८११ गाथाएँ हैं और उदाहरणों के माध्यम से विषय को स्पष्ट किया गया है। विषयवस्तु- इसमें प्रतिलेखनाद्वार, पिण्डद्वार, उपधि, निरूपण, अनायतनवर्जन, प्रतिसेवनाद्वार, आलोचनाद्वार और विशुद्धिद्वार का निरूपण हुआ है। विशेषताएँ- आचार्य मलयगिरि ने इस पर वृत्ति लिखी है तथा इस पर बृहद्भाष्य एवं अवचूरि भी प्राप्त होती है। श्रमण आचार-विचार का वर्णन होने से किसी ने इसे मूलसूत्र माना है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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