Book Title: Agam ek Parichay
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 86
________________ जैन आगम : एक परिचय] में गणि-सम्पदा का विश्लेषण है। यहाँ गणि और गुणी को एकार्थक माना गया है। सम्पदा का द्रव्य और भाव से विवेचन है। पंचम अध्ययन चित्तसमाधि में समाधि पर चिन्तन करते हुए चार प्रकार की समाधि बताई है। छठे अध्ययन में उपासक और प्रतिमा पर चिन्तन है । यहाँ उपासक के द्रव्योपासक, तदर्थोपासक, मोहोपासक और भावोपासक-ये चार भेद बताये हैं। यहाँ श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का वर्णन है। सातवें अध्ययन में श्रमण प्रतिमाओं का वर्णन है। वहाँ भाव श्रमण प्रतिमा के समाधिप्रतिमा, उपधानप्रतिमा, विवेकप्रतिमा आदि पाँच भेद बताये हैं । आठवें अध्ययन में पर्दूषणा कल्प पर चिन्तन है। नवें अध्ययन में मोहनीयस्थानों पर विवेचन हुआ है और दशवें अध्ययन में जन्म-मरण के मूल कारणों की विवेचना करके उनसे मुक्त होने के उपाय बताये गये है। (७) बृहत्कल्पनियुक्ति- यह बृहत्कल्पसूत्र पर लिखी गई है। विषयवस्तु- इसमें तीर्थंकरों को नमस्कार करके ज्ञान के विभिन्न प्रकारों पर विचारणा प्रस्तुत की गई है। अनुयोग पर नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल, वचन और भाव-इन सात निक्षेपों की दृष्टि से चिन्तन किया गया है। आर्य पद पर विचार करते हुए नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, जाति, कुल, कर्म, भाषा, शिल्प, ज्ञान, दर्शन और चारित्र-इन बारह निक्षेपों से विवेचन किया गया है। श्रमण-श्रमणियों के आचार-विचार, आहार-विहार का संक्षेप में बहुत ही सुन्दर वर्णन इस नियुक्ति में है। यह नियुक्ति स्वतन्त्र न रहकर बृहत्कल्प भाष्य में सम्मिलित हो गई है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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