________________
जैन आगम : एक परिचय ]
७९
सिर झुकाना (६) कितने आवश्यकों से शुद्ध (७) कितने दोषों से मुक्त (८) किसलिए आदि बातों पर विस्तृत विचारणा है ।
चौथे प्रतिक्रमण अध्ययन में प्रतिक्रमण के काल के अनुसार अनेक भेद बताये है; यथा-रात्रिक, देवसिक, इत्वरिक, यावत्कथित, पाक्षिक, चातुर्मासिक, सावंत्सरिक, उत्तमार्थक आदि । इसके उपरान्त ( १ ) मिथ्यात्व प्रतिक्रमण, (२) असंयम प्रतिक्रमण, (३) कषाय प्रतिक्रमण, (४) अप्रशस्तयोग प्रतिक्रमण, और (५) संसार प्रतिक्रमण - इन पाँचों प्रतिक्रमणों पर चिन्तन हुआ है । भाव और द्रव्यप्रतिक्रमण पर भी प्रकाश डाला गया है।
पाँचवें कायोत्सर्ग अध्ययन में (१) चेष्टाकायोत्सर्ग और (२) अभिभवकायोत्सर्ग- यों कायोत्सर्ग के दो प्रकार बताये हैं । चेष्टाकायोत्सर्ग भिक्षाचर्या आदि के समय होता है और अभिभवकायोत्सर्ग उपसर्ग आदि के समय । यहाँ बारह भावनाओं का चिन्तन और ध्यान पर भी प्रकाश डाला गया है ।
नियत कायोत्सर्ग में उच्छ्वासों और लोगस्स की संख्या भी बतायी गयी है ।
छठवें प्रत्याख्यान अध्ययन में (१) प्रत्याख्यान, (२) प्रत्याख्याता, (३) प्रत्याख्येय, (४) पर्षद्, (५) कथनविधि और (६) फल- इन छह दृष्टियों से विवेचन किया गया है । प्रत्याख्यान के नाम, स्थापना, द्रव्य, अदित्सा, प्रतिषेध और भाव- ये छह प्रकार बताये हैं । द्रव्य और भाव- प्रत्याख्यान पर भी चिन्तन किया गया है।
महत्व - यह निर्युक्ति अत्यधिक महत्वपूर्ण है । इसमें ऐसे अनेक महत्वपूर्ण तथ्य उजागर हुए हैं जिनका वर्णन इससे पहले
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org