Book Title: Agam ek Parichay
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 47
________________ ४६ [जैन आगम : एक परिचय आठवें अध्ययन का नाम कापिलीय है। कपिल लोभ से विरक्त होकर मुनि बनता है। चोर इसे घेर लेते हैं तब वह जो उपदेश देता है उसका संग्रह इस अध्ययन में है। ___ नवें अध्ययन का नाम नमिप्रव्रज्या है। इसमें प्रत्येकबुद्ध राजर्षि नमि और इन्द्र का संवाद है। दसवें अध्ययन द्रुमपत्रक में जीवन की क्षणभंगुरता का दिग्दर्शन है; और क्षणमात्र भी प्रमाद न करने की प्रेरणा दी गयी है। __ग्यारहवें अध्ययन बहुश्रुत में बहुश्रुत अर्थात् चतुर्दश पूर्वधर की भावपूजा का निरूपण है। - बारहवें अध्ययन हरिकेशीय में मुनि हरिकेशी ब्राह्मणों को यज्ञ का यथार्थ स्वरूप बताते है। तेरहवें चित्त संभूतीय अध्ययन में चित्त-संभूत दो भाइयों की कथा है। एक निदान के कारण नरक हो जाता है और दूसरा निरतिचार तप:साधना के द्वारा मुक्त हो जाता है। चौदहवाँ अध्ययन इषुकारीय है। इसमें छः पात्र हैं। इस अध्ययन में ब्राह्मण संस्कृति पर श्रमण संस्कृति की विजय दिखाई गयी है। पन्द्रहवें सभिक्षुक अध्ययन में भिक्षु के लक्षणों का निरूपण है। सोलहवें ब्रह्मचर्य समाधिस्थान अध्ययन में १० समाधिस्थानों का बड़े मनोवैज्ञानिक ढंग से निरूपण हुआ है। सत्रहवें पापश्रमणीय अध्ययन में साधु को दोषों के परित्याग की प्रेरणा दी गयी है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106