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[ जैन आगम : एक परिचय
विचार किया गया है तथा उनके लिए विशेष प्रायश्चित्त की व्यवस्था की गई है ।
इस आगम में लगभग १५०० सूत्र हैं
इस आगम का विषय गोपनीय है इसलिए उसकी विशेष चर्चा करना यहाँ अपेक्षित नहीं; किन्तु संक्षेप में इतना ही कह देना काफी है कि महाव्रत, पंच समिति, आदि श्रमण - जीवन के आचरणीय व्रतों में लगने वाले सम्भावित दोषों के प्रायश्चित्त का विधान इस आगम में हुआ है ।
रचयिता एवं रचनाकाल - निशीथ के रचयिता श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी माने जाते हैं । इसका सम्बन्ध चरणानुयोग से है । आचारांग की पाँच चूलाओं में अन्तिम चूला का नाम अग्र है और इसीलिये निशीथ का नाम भी ' अग्र' है क्योंकि यह आचारांग की पाँचवीं चूला है । इसकी रचना नवें पूर्व आचारप्राभृत से की गई है, इसलिए इसका नाम 'आचार प्रकल्प' भी है । आगम साहित्य में निशीथ का नाम 'आयारकप्प' भी मिलता है ।
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कुछ चिन्तकों ने इस आगम के श्रुतकेवली भद्रबाहुरचित होने पर शंका उठाई है। लेकिन किसी भी शास्त्र के रचनाकाल को निर्धारित करने के लिए अन्तः साक्ष्य प्रबल माना जाता है । निशीथ के उन्नीसवें उद्देशक में यह आता है कि 'नव ब्रह्मचर्य ( आचारांग के प्रथम श्रुतस्कन्ध) को छोड़ कर अन्य सूत्र को पहले पढ़ाने से लघु- चातुर्मासिक प्रायश्चित आता है।
यह सर्वविदित तथ्य है कि दशवैकालिक सूत्र के निर्माण से पहले ही आचारांग को प्रथम पढ़ाया जाता था और दशवैकालिक
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