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[ जैन आगम : एक परिचय
का विवेचन है । उपक्रम शैली की प्रधानता और भेद - प्रभेदों की प्रचुरता से यह आगम कुछ क्लिष्ट है, लेकिन जैनदर्शन के रहस्य को समझने के लिए बहुत उपयोगी है। चूर्णि टीकाओं आदि में भी इसी शैली को अपनाया गया है।
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इसके अतिरिक्त इस आगम में सांस्कृतिक सामग्री भी काफी परिमाण से मिलती है । संगीत के सात स्वर, स्वरस्थान, ग्राम, मूर्च्छनाएँ, संगीत के गणु दोष, नवरस; सामुद्रिक लक्षण, १०८ अंगुल के माप वाले, शंखादि चिन्ह वाले, मस, तिल आदि व्यंजन वाले उत्तम पुरुष भी बताये गये हैं । नक्षत्र आदि के प्रशस्त होने पर सुवृष्टि और अप्रशस्त होने पर दुर्भिक्ष आदि-निमित्त के सम्बन्ध में प्रकाश डाला गया है ।
छेदसूत्र- छेदसूत्रों में जैन साधुओं की आचार संहिता का विस्तृत विवेचन है । यह सम्पूर्ण विवेचन उत्सर्ग, अपवाद, दोष और प्रायश्चित्त- इन चार विभागों में विभाजित किया जा सकता है । ' उत्सर्ग' का अभिप्राय सामान्य विधान और नियम हैं । 'अपवाद' किसी विशेष परिस्थिति में विशिष्ट विधान को कहा जाता है । दोष - उत्सर्ग और अपवाद मार्ग में किसी प्रकार की स्खलना अथवा भंग को कहा जाता है । प्रायश्चित - इसका अर्थ है दोष लगने पर निष्कपट भाव से आलोचना करके और समुचित दण्ड ग्रहण करके पुनः शुद्धीकरण करना । छेदसूत्रों में इन चारों का विवेचन है । अतः कहा जा सकता है कि छेदसूत्रों के समुचित ज्ञान के अभाव में आचारधर्म के गहन रहस्यों और विशुद्ध आचारविचार को समझना कठिन है ।
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