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[जैन आगम : एक परिचय उन्हीं की मान्यता मूलसूत्रों में हुई। उदाहरण के लिए, पूर्वकाल में आगमों के अध्ययन का प्रारम्भ आचारांग से होता था लेकिन दशवैकालिक के निर्माण के बाद दशवैकालिक से होने लगा।
इन चारों मूलसूत्रों का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है:
(१) उत्तराध्ययन सूत्र- आगम साहित्य के प्राचीन विभाजन के अनुसार उत्तराध्ययन सूत्र अंगबाह्य आवश्यकव्यतिरिक्त कालिकश्रुत का ही एक भेद है। उत्तराध्ययन में दो शब्द हैं-एक 'उत्तर' और दूसरा 'अध्ययन'। चूर्णि में इस प्रकार की योजना प्राप्त होती है
स-उत्तर - पहला अध्ययन निरूत्तर - छत्तीसवाँ अध्ययन स-उत्तर-निरूत्तर - बीच के सभी अध्ययन
लेकिन परम्परागत मान्यता यह है कि यह सूत्र आचारांग के अध्ययन के बाद पढ़ा जाता था इसलिए इसका नाम उत्तराध्ययन पड़ा। जब दशवैकालिक का निर्माण हो गया तो आचारांग के स्थान पर पहले दशवैकालिक पढ़ा जाने लगा और यह सूत्र उत्तराध्ययन ही रहा, अर्थात् बाद में ही पढ़ा जाता रहा।
विषयवस्तु- विषयवस्तु की दृष्टि से उत्तराध्ययन सूत्र धर्मकथात्मक, उपदेशात्मक, आचारात्मक और सैद्धान्तिक इन चारों ही भागों में विभक्त किया जा सकता है। जैसे
धर्मकथात्मक-अध्ययन ७, ८, ९, १२, १३, १४, १८, १९, २०, २१, २२, २३, २५ और २७ ।
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