Book Title: Agam ek Parichay
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 21
________________ २० [ जैन आगम : एक परिचय पर उन्होंने बारहवें अंग की वाचना मुनि स्थूलभद्र को देना स्वीकार किया। मुनि स्थूलभद्र ने दस पूर्वो की अर्थ सहित वाचना ग्रहण की और चार पूर्वों की केवल शाब्दी वाचना ही प्राप्त कर सके । द्वितीय वाचना- उड़ीसा के कुमारी पर्वत पर सम्राट खारवेल ने ईसा की दूसरी शताब्दी में जैन मुनियों का एक संघ बुलवाया और मौर्य काल में जो अंग विस्मृत हो गये थे उनका पुनः उद्धार करवाया । तृतीय वाचना- यह वाचना स्कन्दिलाचार्य के नेतृत्व में मथुरा में वीर निर्वाण संवत् ८२७ से ८४० के मध्य हुई। उस समय द्वादशवर्षीय भीषण दुष्काल के कारण स्थिति जटिल हो गयी थी । अनेक युवक श्रमण विशुद्ध आहार की गवेषणाहेतु दूरदूर देशों की ओर चल पड़े तथा अनेक वृद्ध और बहुश्रुत श्रमण / आयुष्य पूर्ण कर गये । क्षुधा से संत्रस्त मुनि अध्ययन, अध्यापन, प्रत्यावर्तन आदि न कर सके। परिणामस्वरूप श्रुत का ह्रास हुआ। अतिशयी श्रुत नष्ट हो गया । अंग और उपांग साहित्य का भी अर्थ की दृष्टि से बहुत बड़ा भाग विलुप्त हो गया । तब स्कंदिलाचार्य के नेतृत्व में मथुरा नगरी में श्रमण संघ एकत्र हुआ। जिन-जिन श्रमणों को जितना - जितना अंश याद था, उसका संकलन हुआ । मथुरा नगरी में होने के कारण यह वाचना 'माथुरी वाचना' के रूप में विश्रुत हुई । उस संकलन श्रुत के अर्थ की अनुशिष्टि आचार्य स्कन्दिल ने दी थी अतः उस अनुयोग को 'स्कन्दिली वाचना' भी कहा गया। चतुर्थ वाचना- जिस समय उत्तर-पूर्व और मध्य भारत में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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